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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर।] [१३ - (३) अब असमबाई कारण अर्थात् असाधारण कारणका स्वरूप कहते हैं कि जो बस्तु उपादान कारणसे अभेदरूप हो परन्तु कार्य जिससे न हो, और किञ्चित् कार्य हो तो रहे नहीं, जैसे घट कार्य उत्पन्न हो उस घटमें मिट्टीपना रहा, तिस रीतिसे न रहे। उसीका माम असाधारण कारण है, जैसे घटरूप कार्य्य उत्पन्न होता हैं उस वक्त स्थास, कोस, कुशलाकार होय है सो वह मिट्टी पिण्डरूप उपादान कारणसे अभेद हैं। परन्तु घटकार्य उत्पन्न भयेके बाद वो स्थास, कोस, कुशलाकार रहे नहीं, इसलिये ये सब मसाधारण कारण जानना। उक्तञ्च "प्रमाण निश्चयेन उपादानस्य कार्यत्वाप्राप्तस्य अवांतरावस्था असाधारणं इति।" ___ अब चौथा अपेक्षा कारण कहते हैं कि जैसे उपादान कारण वा निमित्त कारणका व्यौपार करते हैं तिस रीतिका व्यौपार न करना पढ़े और कार्यसे भिन्न भी हो परन्तु जिसके बिना कार्य पैदा न हो ऐसा नियामक ( निश्चय है) उसके बिना कोई कार्य नहीं होता। और इसलिये इसको कारण कहकर अपेक्षा कारण लिया है। क्योंकि .देखो जैसे भूमि ( पृथ्वी ) तथा आकाशादि बिना कोई घटादि कार्य नहीं हो सकता, इस वास्ते इसको अपेक्षा कारण मानना अवश्यमेव है। क्योंकि इसको तत्वार्थादिक ग्रन्थों में कहा है “यथा घटस्योत्पतौ अपेक्षा कारण व्योमादि अपेक्षते तेन बिना तद भावा भावात् निर्व्यापारमपेक्षा कारण इति तत्वार्य बृतौ ॥ तथा विशेषावश्यके अवधिशानाधिकारे "इहां द्वार भूतशिला तलादि द्रव्यानुत्पद्यमानस्यावधिः सहकार कारणानि भवन्ति अत्र सहकार कारणं गवेष्य इति ।" इस रीतिसे चार कारणोंका स्वरूप कहा। परन्तु कारणमें कारणपनेका जो गुण है सो मूल धर्म नहीं किन्तु कारणपना उत्पन्न होता है। पोंकि देखो जब कर्ता कार्य उत्पन्न करनेकी इच्छा करके तो जो वस्तु ( उपकरण ) रूप कार्य्यपने में प्रवृत्तावे तिस बक उन वस्तुओं में अर्थात् कारणमें कारणपना उत्पन्न हो। जैसे काछमें सादिक भनेक पदार्य होनेकी शक्ति है परन्तु उस Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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