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________________ [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। १२] से कार्य भी नष्ट होजाय, और शास्त्रोंमें भी इसरीतिसे कहा। महाभाष्ये "तहव कारणं तं, तवो पडस्से हजेणतम्मइया ॥ मन्न कारण, मित्यवोमादओतस्स ॥ इस गाथाके व्याख्यानमें - कहा है कि, “यदात्मकं कायं दृश्यते तदिह तदइब्य कारणं उपा कारणं यथा तंतवपटस्य इति ।" इसरीतिसे जब कर्ता पट ( बनानेका व्यापार करे तब तंतु उपादान कारण है सो तंतु ही कर्ताक . व्यापारसे पट रूप होजाते हैं। इसलिये पटका उपादान कारण तन्तु है, यह प्रथम उपादान कारणका लक्षण कहा। . अब दूसरा निमित्त कारणका लक्षण कहते हैं कि, उपादान कारणसे भिन्न अर्थात् जुदा हो और कार्यको उत्पन्न करे, कारणके नष्ट होनेसे कार्य नष्ट नहीं होय उसका नाम निमित्त कारण हैं। उस निमित्त कारणमें कर्ताके ( व्यवसाय कहता) करता जो उद्यम करे तो निमित्त कारण कहना, क्योंकि देखो जहाँ घट कार्य उत्पन्न होय तहां चक्र, चीबर, दंडादिकसो सर्व भिन्न है, और निमित्त बिना मिले मिट्टीसे घट होय नहीं, तैसे ही चक्रादिकसे भी उपादान कारण (मिट्टी ) के बिना घट कार्य होवे नही, और जब तक कुम्भार घट कार्य करने रूप व्यापार न करे, तब तक उनको कारण नहीं कहना, परन्तु जव (समबाई कारण कहता ) उपादान कारण तिसको नेमा कहना। अर्थात् कर्ता (कुम्भकार ) जब उपादान कारणसे कार्य रूप घट बनानेकी इच्छा करे तब जो २ घट बनानेके काममें लगे सो सो सर्व निमित्तकारण जानना। जिस वक्त में जो कार्य उत्पन्न करे उस वक्त में जो जो चोज उस कार्यके काममें आवे सो सो निमित्त कारण, और कार्य करने के बिना कोई निमित्त कारण नहीं है। जर घटका निमित्त कारण चक्र, चीबर, दण्डादिक हैं, तैसे ही पट ( वली कार्यका निमित्त कारण तुरी, व्योमादिक। इसरीतिसे जसा हो उस कार्यके उपादान कारणसे भिन्न बस्तु जो कार्यक काम आवे सो सब निमित्त कारण हैं इस रीतिसे दूसरा बस्तु जो कार्यके होनेमें इस रीतिसे दूसरा निमित्त कारण कहा। Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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