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________________ * श्रीबीतरागाय नमः अथ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । - दोहा ७ प्रणमूं निजरूपको, श्रीमहावीर निजदेव । गुरु अनुभव श्रुत देवता, देहु श्रुत नितमेव ॥१॥ प्रथम इस ग्रन्थमें हमको यह विचार करना है कि, वर्तमान कालमें कोइ तो निश्चयको पकड़ बैठे हैं, और कोई व्यवहारको पकड़ बैठे हैं । परन्तु इनका असल रहस्य नहीं जानते हैं कि, निश्चय क्या चीज है और व्यवहार क्या चीज है। इन दोनोंके रहस्य नहीं जाननेसे हो झगड़ा करते हैं। जो इन दोनों शव्होका अर्थ यथावत् जान जावें तो कार्य कारणको समझकर साध्य साधनसे अपनी आत्माका कल्याण करें। इसलिये इस जगह हमको इस निश्चय, व्यवहार शब्दके अर्थको जाननेके वास्ते प्रथम इसका निर्णय करना आवश्यक मालम हुआ कि निश्चय, व्यवहार क्या वस्तु है और इन शब्दोंका अर्थ क्या है। प्रथम निश्चय शब्द किस धातुसे बनता है और वह धातु किस 'अर्थ में है। तो देखो कि ( चित्र चयने धातु है।) चयनं अर्थात् “राशी Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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