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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । [२०१ अदि बातोंका वर्तमान कालमें जैनियोंमें कहना-सुनना बहुत कम है, इसलिये इन बाबतों की चर्चाके समझनेवाले बहुत कम है। क्योंकि जहां दुःखगर्भित और मोहगर्भित वैराग्यवालोंको अपनेको पूजाना है, खूब माल खाना है, मौज करना है, मान-प्रतिष्ठादि बढ़ाना है, खूब राग-द्वष बढ़ाना है, गच्छादि ममत्वमें गृहस्थियोंको फसाना है,आत्माके लिये ज्ञान की बात करनेका किञ्चित् भी ख्याल न कर केवल क्रिया करनेके झगड़े को उठाना है, आपसमें राग-द्वेष को फ़ैलाना है, वहां ऊपर लिखे वादोंके कहने सुनने का कम हो जाना स्वाभाविक है। और ग्रन्थ बढ़ जानेके भी भयसे आरम्भवाद का कथन यहां पर न लिखाया, किञ्चित् प्रसङ्गसे परमाणुके ऊपर भी कह सुनाया। इस रीतिसे अगुरुलघुका स्वरूप जान कर आत्मार्थी सुक्ष्म बुद्धिसे विचार करें। इस अगुरुलधुमें छः प्रकारकी हानी और छः प्रकारकी वृद्धि होती है, सो अब उसको दिखाते हैं। पहले छः प्रकारकी हानिका नाम कहते हैं १ अनन्तभाग हानी, २ असंख्यातभाग हानी, ३ संख्यातभाग हानी, ४ संख्यातगुण हानी, ५ असंख्यातगुण हानी ६ अनन्तगुण हानी यह छः हानी कही। अबवृद्धि कहते हैं-१ अनन्तभागवृद्धि, २ असंख्यातभाग वृद्धि, ३ संख्यातभागवृद्धि, ४ संख्यातगुण वृद्धि, ५ असंख्यातगुण वृद्धि, ६. अनन्तगुणवृद्धि इस प्रकारसे छः प्रकारकी वृद्धि कही। अब इस जगह भागका भावार्थ कहते हैं कि अंग्रेजीके पढ़े हुए तो १०० २०० ३०० १००० इस रीतिसे कहते हैं, और लौकिक में एक के सौ हिस्सा, एकके२००हिस्सा, एकके ३०० हिस्स' इस रीतिसे इसकी संज्ञा हैं । सो इस जगह भी भाग नाम हिस्सा का हैं। जैसे एक चीजके अनन्तभाग वा हिस्से, एक चीजके असंख्यातभाग वा हिस्से, इसोरीतिसे एक चीजके संख्यात भाग वा हिस्से को क्रमशः अनंतभाग आदि कहते हैं। इनको वृद्धि वा हानीमें लगा लेना। प्रश्न:- संख्यात, असंख्यात, अनन्त यह तीन शब्द जैनमतमें कहे हैं, Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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