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________________ [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। २००] . . पर लक्षण उस चीजका ही किया है कि जिसको अतीन्द्रिय ज्ञानके बिना चर्मदृष्टि पुरुष सूक्ष्म बुद्धिसे भी न विचार सके। यदि सूक्ष्म परमाणुमें भी रूपसे रूपान्तर, रससे रसान्तर, गंधसे गन्धान्तर, स्पर्शसे स्पर्शान्तर न होता तो पुद्गलका पूरण, गलन, मिलन, विखरन रूप लक्षण कदापि न कहते । इसलिये पूरण, गलन, मिलन, विखरन रूप लक्षण कहनेसे ही सूक्ष्मपरमाणु में भी रूप, रस, गन्ध, स्पर्शका फिरना ( बदलना ) सिद्ध हो गया। दूसरा और भी सुनो कि यदि सूक्ष्म परमाणु में वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्शका बदलना न मानोगे तो द्रव्यके छः सामान्य स्वभावों में से पांचवां सत्त्व स्वभावान बनेगा, पाँच ही स्वभाव रह जायंगे, क्योंकि सत्त्व का लक्षण तत्त्वार्थ सूत्रमें ऐसा किया है कि “ उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् " जो उत्पाद, व्यय और ध्रुवपना करके युक्त होय उसका नाम सत् है। श्री वीतराग सर्वज्ञदेवने जीव और अजीव दो पदार्थ कहे हैं जिसमें अजीवके चार भेद हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और चौथा पुद्गल । इसरीतिसे शास्त्रों में द्रव्यका वर्णन है । और द्रव्योंका सत्व स्वभाव है, सत्त्व नाम है उत्पाद,व्यय और ध्रौव्यसे युक्तका । यदि सूक्ष्म परमाणुमें वर्णान्तर, रसान्तर, गंधान्तर और स्पर्शान्तर मानोगे नहीं तो फिर परमाणुमें उत्पाद, व्यय और ध्रुवपना क्योंकर घटेगा ? सूक्ष्म परमाणुमें भी जब वर्णसे वर्णान्तर, रससे रसान्तर, गन्धसे गन्धान्तर, स्पर्शसे स्पर्शान्तरका होना मानोगे, तब ही यह पांचवां सत्त्व नामका सामान्य स्वभाव द्रव्यका बनेगा। इस लिये सूक्ष्म परमाणुमें भी रूप, रस, गन्ध, स्पर्श बदलता है। तीसरा और भी सुनो कि-जब सूक्ष्म परमाणुमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श का बदलना न मानोगे तो आरम्भवादमत की आपत्ति आवेगी। सा आरम्भवाद मत हैं नैयायिकोंका, वह जैनियों को मान्य नहीं है । इस आरंभवादका स्वरूप किश्चित् तो हमने 'स्याद्वाद-अनुभव-रत्नाकर में दूसरे प्रश्न के उत्तर में नैयायिक मत निर्णय में दिखाया है। उस आरम्भवाद के निर्णयकी कोटी बहुत क्लिष्ट है, और इस आर Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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