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________________ की तरह पेटभरता , कि वीतराग का मार्ग बहुत नहीं कहता हूं कि वर्तमान श्री वीरभगवानका शासन प्रन्यकार की जीवनी। होनेसे मैं अपनी धिठाइ करके भांड़ चेष्टासे कुत्तेकी तरह। और मेरेमें साधुपना नही मानता हूं, क्योंकि वीतराग क कठिन है, सो मेरेमें नहीं है । और ऐसा भी नहीं कहता है कालमें कोई साधु-साध्वी नहीं है, क्योंकि श्री वीरभगवान छेडले आरे तक रहेगा। और जो साधु साध्वी भगवंतकी आज्ञा वाले हैं उनको मैं बारम्बार त्रिकाल नमस्कार करता हूं। परन्त मैं कि मार्गकी घोलना करने और शुद्ध २ जिन मार्गमें प्रवृत्त होनेकी । करता हूं। सो भो देवानुप्रियो, जो तुमने सन्दोह किया सो मैंने सब हाल कहा। - "प्रश्नः-आपने अपने मध्ये कारण लिखाया सो तो ठीक है, परन्तु हम जब किसी साधुसे कहते हैं कि महाराज अपने में यथावत् साध्पना नहीं बतलाते हैं, उस वक्त वह साधु लोग कहते है कि स्वांग भरकर बहु-रूपियापनसे क्यों डोलते हैं ? क्या इसस्वांगके बिदुन पेट न भरेगा? इस बातको सुनकर हम चुप हो जाते हैं, इसका उत्तर आप लिखाइये। "उत्तरः-इस प्रश्नका उत्तर ऐसा है कि स्वांग तो मैंने भरलिया, परन्तु मुझसे यथावत् रूप न दरसाया गया, इस वास्ते मैं यथावत् साधु भी न बना । जैसा कुछ मेरेमें गुण-अवगुण था सो जाहिर किया, क्योंकि अपने मुखसे आपही साधु बनने से कुछ कार्यकी सिद्धि न होगी, किन्तु निष्कपट होकर भगवद्-आज्ञासे जो साधुपना पालेगा वहीं साधु है और उसीका कार्य सिद्ध होगा । और मुझको यथावत् कहनेका कारण यही है कि जिस पुरुषको जिस वस्तुमें ग्लानी बैठ है उस वस्तुमें फिर प्रवृत्ति नही होती। सो मैंने भी अनादि कालसे झूठ कपट, दंभ, छल आदि किये हैं, और इस जन्म में जो मैंने धूर्तता, कपट, छल आदि किये हैं सो मेरी आत्मा जाने या ज्ञानी जाने, जो सप्त व्यसनके सेवनेवाले हैं उससे कोई बात बाकी नही रहता अपने कर्माको कहां तक लिखं ? परन्तु मेरे शुभ कर्मका तब इन चिजोंमें ग्लानी बैठनेसे इनको छेडकर यह काम । । ज्ञानी जाने, क्योंकि बाकी नही रहती। सो मैं शुभ कर्मका उदय आया हि काम किया अर्थात् Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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