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________________ अव्यानुभव-रत्नाकर । રહ साल में शब्दत्वका समवाय होनेसे श्रोत्रका शब्दत्वसे समवेत-समवाय सम्बन्ध है । तैसे ही जब श्रोत्रमें शब्दकी प्रतीति नहीं होय, तब शब्दप्रभावका प्रत्यक्ष होता है; तिस जगह शब्द-अभावका श्रोत्रसे विशेषपाता सम्बन्ध है। जिस जगह अधिकरणमें पदार्थका अभाव होता है, तिस जगह अधिककरण में पदार्थक अभावका विशेषणता सम्बन्ध है। जैसे वायुमें रूप नहीं है, इसलिये वायुमें रूप-अभावका विशेषणता सम्बन्ध है। जहां पृथिवीमें घट नहीं है वहां पृथिवीमें घटअभावका विशेषणता सम्बन्ध है। .... इस रीतिसे शब्द-शून्य श्रोत्रमें शब्द-अभावका विशेषणता सम्बन्ध है। इसलिये श्रोत्रसे शब्द-अभावका विशेषणता सम्बन्ध शब्द-अभावके प्रत्यक्ष शानका हेतु (कारण) है। जहाँ श्रोत्रसे ककारादिक शब्दका प्रत्यक्ष होता है, वहांसमवाय सम्बन्ध है। उस ककारादिकमें कत्वादिक जो जाति, उसका समवेत-समवाय सम्बन्धसे प्रत्यक्ष होता है, और श्रोत्रमें शब्द-अभावका विशेषणता-सम्बन्धसे प्रत्यक्ष होता हैं। जहाँ श्रोत्रसमवेत ककारमें खत्व-अभावका प्रत्यक्ष होता है, वहां श्रोत्रका खत्वअभावसे समवेत-विशेषणता सम्बन्ध है, क्योंकि श्रोत्रमें समवेत कहिये समवाय सम्बन्धसे रहे हुए जो ककार, तिसमें खत्व-अभावका विशेषणता सम्बन्ध है। इस माफिक अभावके प्रत्यक्षमें श्रोत्रके अनेक सम्बन्ध होते हैं। परन्तु विशेषणपना सर्व अभावका सम्बन्ध है। इसलिये अभावके प्रत्यक्षमें श्रोत्र का एक ही विशेषणता सम्बन्ध है। इसरीतिसे श्रोत्र-जन्य प्रमाके हेतु तीन सम्बन्ध है, शब्दके ज्ञानका हेतु समवाय सम्बन्ध है, और शब्दके धर्म शब्दत्व और कत्वादिक ज्ञानका हेतु समवेत-समवाय सम्बन्ध है, और श्रोत्र-जन्य ज्ञानके अभावका विषय-विशेषणता सम्बन्ध है। विशेषणत नाना प्रकार की है। शब्द-अभावके प्रत्यक्षमें शुद्धविशेषणता सम्बन्ध हैं, ककार-विषय खत्व-अभावके प्रत्यक्षमें विषयविशेषणता है। सो विशेषणता सम्बन्धके अनन्त भेद है, तौभी विशेषणता सर्व में हैं, इसलिये विशेषणता एक ही कहनी चाहिये। . रायके दो भेद हैं-एक तो भेरी आदिक देशमें ध्वनिरूप शब्द होता है Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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