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________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर। १३४ ] घड़ा भरकर सिरके ऊपर लाती है, उस वक्त में घट अथवा घड़ा कहे, अन्यथा रक्खे हुए का घड़ा न कहे। इस लिये जो वस्तु अपने गुणक्रियामें यथावत् प्रवृत्त है, उस वक्त उसको वस्तु कहे, इस रीति से एवंभूत नय कहा । इन सातो नयका किंचित् वर्णन किया है और विशेषावश्यक प्रथम इन सातो नयके बावन (५२) भेद कहे हैं सो भी दिखाते हैं। नैगमनय के ( १० ) भेद, संग्रहनयके ( १२ ) भेद, व्यवहारनयके (४) भेद, ऋजुसूत्रनयके ( ६ ) भेद, शव्दनयके ( ७ ) भेद, समभिरुढनय के (२) भेद और एवंभूतनयका (१) भेद । स्याद्वाद - रत्नाकर-भवतारिका में भी नयका स्वरूप विस्तारपूर्वक कहा है, परन्तु वो ग्रंथ मेरे पास है नहीं, तोभी किंचित् नयका भावार्थ दिखाते हैं कि नय किसको कहना और इस नय कहनेका प्रयोजन क्या है । सोही दिखाते हैं कि वस्तुमें अनेक धर्म है सो बिना नयके' कहने में, न आवे, इसलिये नय कहनेका प्रयोजन है, सो नय उसको कहते हैं कि जिस भांशको लेकर बस्तु कहे, उस अंशको मुख्यता, और दूसरे अशोंसे उदासीनपना रहे । परन्तु जो मुख्य अंश लेकर कहे और दूसरे अंशका निषेध न करे उसका नाम तो सुन ( अच्छा ) और जो जिस अंशको लेकर कहे उस अंशको मुख्यता करके स्थापे और दूसरे अंशोंको न गिने, उसको नयाभास कहते हैं। और जो जिस अंशको मुख्यपने लेकर प्रतिपादन करे और दूसरे अंशोंको निषेध अर्थात् विलकुल उत्थापे, उसको दुर्नय कहते हैं । इस वास्ते बस्तुका अनेक धर्म कहनेके वास्ते नय कहा है। सो इन नयों का स्वरूप यथावत् तो स्याद्वाद - सिद्धान्त अर्थात् जिनमतमें ही है। और मतावलम्बियों में नहीं। उनमें नयाभास, और दुर्नयका कथन है । सो सर्व मतावलम्बि जो चार सुनय है उन्हीं चार नयाँकै आभास और दुर्नयमें अन्तर्गत है । सो इन सातो नयके दो भेद हैं-एक तो द्रव्यार्थिक, दूसरा पर्यायार्थिक । सो द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिकके भेद तो हम पीछे कह 1 चुके हैं, इस रीतिले किंचित् भेद कहा । Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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