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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर। [१०७ द्रव्य अपने चलनआदि गुणसे अनेक जीव, पुद्गलको सहाय करे हैं। ४ गुण ब्यंजन पर्याय, यह एक गुणके अनेक भेद हैं । ५ स्वभाव पर्याय, सो अगुरुलघु यह पर्याय सर्व द्रव्यमें हैं। ६ विभावपर्याय, जीव, और पुद्गलमें हैं, क्योंकि जीव विभाव पर्यायसे ही चार गतिका नया २ भव करता है और पुद्गलमें विभाव पर्याय होनेसे ही खन्द सर्व बनता है, इसरीतिसे छः पर्यायार्थिकका अर्थ कहा। ___ इससे अलावे दूसरीरीतिसे भी पर्यायार्थि कके ६ भेद कहे हैं सो भी दिखाते हैं। १ अनादि नित्यपर्याय, जैसे मेरु आदि है। २ दुसरा आदि नित्य पर्याय, जैसे सिद्ध पना है। ३ अनित्य पर्याय, जैसे समय २ में ६ गुब्य उपजे हैं और बिनसे हैं। ४ अशुद्धनित्यपर्याय, जैसे जन्म मरण होता है। ५ उपाधिपर्याय, जीव कर्मका सम्बन्ध है। ६ शुद्ध पर्याय, सर्व द्रव्यका मूल. ( अगुरु लघु पर्यायको मूल पर्याय कहते हैं) पर्याय एक सरीखा है। इसरोतिसे पर्यार्थिकका स्वरूप कहा। अब प्रथम ७ नयोंके नाम कहते हैं ? १ नयगम नय, २ संग्रह नय, ३ व्यवहार नय, ४ ऋजुसूत्र नय, ५ शब्द नय, ६ संभिरूढ नय, ७ एवंभूत नय। इसरीतिसे सातो नयका नाम कहा। अब इन नयोंका विस्तारसे स्वरूप दिखाते हैं। १ नयगमनय। नयगमनयका ऐसा अर्थ होता है कि नहीं है गम जिसमें उसका नाम नयगम है। यह नय एक अंश गुण उपजे, अथवा आरोपादिवा संकल्प मात्र करनेसे बस्तुको मान लेता है, इसलिये इस जगह दृष्टान्त दिखाते हैं कि-कोई मनुष्य अपने दिलमें विचारने लगा कि पायली लाऊं ( मारवाड़में धान मापने अर्थात् तौलनेके काष्टके बर्तनको पायली कहते हैं) तब वो मनुष्य काष्ट लेनेके वास्ते जंगल अर्थात् बनको गया, उस बनमें रहनेवाले मनुष्यने उससे पूछा कि तुम कहां जाते हो, तब उस जानेवाले मनुष्यने कहा कि मैं पायली लेने . जाता हुँ, ऐसा कहा। तो इस जगह विचार करना चाहिये कि जिस Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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