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________________ १०६] [द्रव्यानुभव-रत्नाकर। सात नयका स्वरुप । अब नयका स्वरूप दिखाते हैं, कि-नयके दो भेद हैं एक तो द्रव्यार्थिक, दूसरा पर्यायार्थिक, सो द्रव्यार्थिकके नयगम आदि तीन अथवा चार भेद हैं। और पर्यायार्थिकके ऋजुसूत्र नयको अंगीकार करेंतो चार भेद हैं और जो शब्द नयसे अंगीकार करें तो तीन भेद है। सो प्रथम द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिकका अर्थ कहते हैं, इन दोनों में भी पहले द्रव्यार्थिकका अर्थ कहते हैं कि-उत्पाद व्यय पर्याय गौण पने रक्खे और द्रव्यका गुण सत्तामें है उस सत्ताको ही ग्रहण करे, उसका नाम द्रव्यार्थिक है। सो उस द्रव्यार्थिकके भो दस (१०) भेद हैं सो ही दिखाते हैं, कि प्रथम तो नित्य द्रव्यार्थिक, सर्व द्रब्य नित्य है। २ अगुरु लघु क्षेत्रकी अपेक्षा न करे, एक मूल गुणको इकठ्ठा ग्रहण करे सो एक द्रब्यार्थिक, जैसे ज्ञानादिक गुण सर्व जीवका सरीखा है इसलिये सर्ब जीव एक समान है। ३ स्वय द्रव्यार्थिकको ग्रहण करे सो सत्य द्रव्यार्थिक, जैसे “सतलक्षणं द्रव्यं । ४ और जो गुण कहनमें आवें, उसको अंगीकार करके कहे सो वक्तव्य द्रव्यार्थिक। ५ अशुद्ध द्रव्यार्थिक जो अपनी आत्माको अज्ञानी कहना कि मेरी आत्मा अज्ञानी है। सर्व द्रव्य गुण पर्याय सहित है, इसका नाम अन्वय द्रव्यार्थिक है। ७ सर्व द्रव्यकी मूल सत्ता एक है, इसका नाम परम द्रव्यार्थिक है। ८ सर्व जीवका आठ रुचक प्रदेश निर्मल है, इसका नाम शुद्ध द्रव्यार्थिक। ६ सर्व जीवोंका असंख्यात् प्रदेश एक समान है, इसका नाम सत्ता द्रव्यार्थिक । १० गुण गुणी द्रव्य सो एक है, आत्मा ज्ञान रूप है, इसका नाम परम स्वभाव ग्राहक व्यार्थिक है। इसरीतिसे द्रव्यार्थिकके दस (१०) भेद हुए। अव पर्यायार्थिकनयका अर्थ करते हैं कि-पर्यायको ग्रहण करे सो पर्यायार्थिक कहना, उस पर्यार्थिकके छः (६) भेद हैं। प्रथम भव्य पर्याय पना अथवा सिद्ध पना। २ द्रव्य व्यंजन पर अपना प्रदेश समान . ३ गुणपर्याय, यह एक गुणसे अनेकता होय, जैस ध.. दिक Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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