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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।] [६१: विशेष संग्रह भेदक व्यबहार है, इस रीतिसे उत्तर २ विवक्षा जान लेना। ६-अब ऋजु सूत्रनय कहते हैं कि वर्तमानमें जैसी वस्तु होय और जैसा अर्थ भाषे उस बस्तुमें भूत और भविष्यत् अर्थको न मानें केवल वर्तमान अर्थको ही माने, उसका नाम ऋजु सूत्र है। सो उस ऋजु एत्रके भी दो भेद हैं-एकतो सूक्ष्म ऋजु सूत्र, २ स्थूल ऋजु सूत्र, सो प्रथम सूक्ष्म ऋजु सूत्रका उदाहरण कहते हैं कि-जैसे क्षणिक पर्याय अर्थात् उत्पादवयको माने। और स्थूल ऋजु सूत्र नय-मनुष्यादि पर्याय को माने अर्थात् मनुष्य, त्रियंच आदिक भवपर्यायको गहण करे, परन्तु कालत्रियवर्तीपर्यायमाने नहीं। और व्यबहार नय है सो तीनकालके पर्यायको माने, इसलिये स्थूल ऋजुसूत्र अथवा व्यबहार नयका शङ्कर दूषण नहीं जानना, इस रीतिसे ऋजु सूत्र नय कहा। ७ अब शब्द नय कहते हैं कि प्रकृति, प्रत्ययादिक ब्याकरण व्युत्पत्ति से सिद्ध किया जो शब्द मान, अथवा लिंग बचनादि भेदसे अर्थका भेद माने जैसे टटः टटी: ? टटः यह त्रणलिङ्ग भेद अर्थ भेद। आपः जल इस रीतिसे एक बचन, बहु बचन, भेदसे अर्थका भेद माने,. उसको शब्द नय कहते हैं। ... ८-अब संभिरूढ नय कहते हैं कि-भिन्न शब्दसे भिन्न अर्थ होय इसलिये यह नय शब्द नयसे कहें कि जोतं लिंगादि भेद अर्थभेद माने है तो शब्दभेद अर्थभेद क्यों नहीं मानता, क्योंकि घट शब्दार्थ भिन्न और कुम्भ शब्दार्थ भिन्न, इस रीतिसे मान, इन दो शब्दोंको एक अर्थपना है सो शब्दादि नयकी व्यवस्थामें प्रसिद्ध है, इस रीतिसे संभिरूढ नय कहा। ___-अब एवंभूत नय कहते हैं कि सर्व अर्थ किया तथा परिणित क्रिया केवक्तमाने परन्तु अन्यथा होय तो नहीं मानें, जैसे छत्र, चमरादिक करके शोभायमान परषदामें बैठा होय उसवक्तमें उसको राजा मान, परन्तु सानादिक करता होय अथवा भोजन आदि करता होय उस वक्त उसको राजा न कहे, इस रीतिसे यह नव नय कहे। Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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