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________________ [ द्रव्यानुभव-रत्नाकर ८८] भाव जो काला रंग आदिक, इसविवक्षा करनेसे नास्तिरूप हो इसरीतिसे नवां : भेद कहा। ___ अब दसवाँ भेद कहते हैं कि-"परम भाव गाते द्रव्यार्थिक", क्योंकि देखो आत्मा ज्ञान स्वरूप कहते हैं, और दर्शन, चारित्र, बीर्य, लेस्या आदिक आत्माका अनन्ता गुण है. सबमें ज्ञान है सो उत्कृष्ट है, क्योंकि अन्य द्रव्यसे जो आत्मामें भव है सो ज्ञान गुणसे ही दीखता है, इसरीतिसे आत्माका शान सोही परम भाव है, इसरीतिसे दूसरे द्रव्योंका भी मुख्य गुण है सो ही परम भाव है, इसरीतिसे द्रव्यार्थिकके १० भेद कहे। २–अब पर्यार्थिक नयके भी ६ भेद कहते हैं-तिसमें प्रथम "अनादि नित्यशुद्धपर्यार्थिक है, जैसे पुद्गलका पर्याय मेरु प्रमुख है सो प्रवाहसे अनादि और नित्य है, असंख्याते काल पुअन्योन्याद्गल संक्रमे है, परन्तु संस्थान अर्थात् मेरु जैसाका तैसा है, इसीरीतिसे रत्नप्रभादिक पृथ्वी पर्याय भी जानना। इस रीतिसे अनेक प्रकारको जनमतमें शैली फेली हैं सो दिगम्बर मत भी जैनी नाम धरायकर इसरीतिसे नय की अनेक शैली ( रीतें ) प्रवद्वे हैं, तिसमें बुद्धि पूर्वक विचार करना चाहिये, और जो सञ्चा होय उसको ही धारण करना चाहिये, झठे की संगति कदापि न करनी चाहिये, परन्तु शब्दके फेर मात्रसे द्वष भी न करना चाहिये, असल अर्थ होय सोही प्रमाण करना चाहिये, इसरातित पहला भेद हुआ। - अब दूसरा भेद कहते हैं कि “सादी नित्य शुद्ध पार्थिक ।' जैसे सिद्ध की पर्याय है तिसकी आदि है, क्योंकि देखो जि. वक्त सर्व कर्मक्षय किया उस वक्त सिद्ध पर्याय उत्पन्न हुई थी उस उत्पन्न होने की तो आदि है, परन्तु उसका अन्त नहीं, कर सिद्ध भयेके बाद सिद्ध भाव सदाकाल रहेगा, इसरीतिसे पाय दूसरा भेद कहा। अब तीसरा भेद कहते हैं कि "सत्तागौणत्वे उत्पाद तरीतिसे पर्याथिकका च उत्पाद पय Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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