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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।] दिखाया, तुम्हारे भ्रमको मिटाया, किंचित् स्याद्वाद का रहस्य दिखाया, इसके बाद आगेके द्रब्योमें पक्ष उतारनेको चिन्त चाया। . ऐसेही आकाश द्रव्यमें अवगाहना दान गुण और खन्दलोक, अलोक प्रमाण एक है, देश, प्रदेश अनेक है, अथवा पर्याय अनेक हैं। ऐसेही धर्मस्तिकायमें चलन सहाय आदिक गुण करके अथवा लोक प्रमाण खन्द करके तो एक है, और देश प्रदेश करके अनेक हैं, गुण करके अनेक हैं, अथवा पर्याय करके अनेक हैं, इसरीतिसे अनेक हैं। ऐसेही अधर्मस्तिकायमें स्थिर सहाय गुण करके एक हैं, अथवा लोक प्रमाण खन्द करके एक है, देश, प्रदेश करके अनेक हैं, अथवा गुण अनेक हैं, पर्याय अनेक हैं, इसरीतिसे अनेक है। ___ ऐसेही काल द्रव्य, बर्तना लक्षण करके तो एक है, परन्तु गुण अनेक हैं, पर्याय अनेक हैं। ऐसेही पुद्गल द्रव्यमें पुद्गल पना अथवा मिलन, बिखरन गुण अथवा परमाणुरुप करके तो एक है, क्योंकि पुद्गलमें पुद्गलपना और परमाणुपना सबमें एक सरीखा हैं,इसलिये एक है, परन्तु गुण अनेक हैं और पर्याय अनेक हैं, अथवा परमाणु अनन्त है, इसरीतिसे अनेक हैं। छओं द्रव्यों में इसरीतिसे एक, अनेक पक्ष कहा, अब सत्य, असत्य पक्ष कहनेको दिल चहा। — सत्य-असत्य ।। ... .. छओं द्रव्योंकी स्वयद्रव्य, स्वय क्षेत्र, स्वयकाल, स्वयभाव करके तो सत्यता है, परन्तु परद्रब्य, परक्षेत्र, परकाल, परभाब करके असत्य है, सो प्रथम इन छओं द्रव्योंका स्वयद्रव्य, क्षेत्र, काल, भाब दिखाते हैं कि किस किस द्रव्यका कौन द्रव्य, कौन क्षेत्र, कौन काल, कौन भाव है। जीव द्रब्यका स्वय द्रव्य जो गुण पर्यायका भाजन अर्थात् समूह। और जीव द्रब्यका स्वय क्षेत्र एक जीवके असंख्यात् Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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