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________________ द्रव्यानुभव-रत्नाकर । [७३ नित्य-अनित्य । प्रथम नित्य, अनित्य पक्षका स्वरूप कहते हैं। जीव द्रव्यका चार गुण और ३ पर्याय नित्य हैं, एक अगुरु लघु पर्याय अनित्य है, आकाशास्ति कायका ४ गुण एक पर्याय अर्थात् खन्दलोक अलोक प्रमाण नित्य हैं। देश, प्रेदेश, गुरु लघु ये तोन पर्याय अनित्य हैं। धर्मस्ति कायका चार गुण एक पर्याय नित्य है, देश, प्रदेश, अगुरु लघु, ये तीन पर्याय अनित्य हैं। अधर्मस्ति कायका चार गुण और एक पर्याय नित्य है देश, प्रदेश, अगुरु लघु, तोन पर्याय अनित्य है। काल द्रव्यके चार गुण नित्य हैं, पर्याय चारोंही अनित्य है। पुद्गल द्रब्यका चार गुण नित्य है, पर्यायचारोंही अनित्य हैं। इसरीतिसे नित्य, अनित्य 'पक्ष छओं द्रव्यों में कहा और इस नित्य अनित्य पक्षसे उत्पाद और 'विनासका किंचित् अभिप्राय कहा। . एक-अनेक । अब एक अनेक पक्षभी छओं द्रव्योंके ऊपर उतारकर दिखाते हैं, 'कि जीव द्रव्यमें जीवत्व अर्थात् चेतना लक्षणपना तो एक है, और जीवमें गुण अनेक, पर्याय अनेक, इसरीतिसे अनेक हैं, अथवा जीव अनन्ते हैं, इसरीतिसे भी अनेक हैं, इसलिये जीवमें एक, अनेक पक्ष हुआ। इस एक अनेक पक्षको सुनकर जिज्ञासु प्रश्न करता है सो किंचित् प्रश्नोत्तर दिखाते हैं। [प्रश्न ] जो तुम एक पक्षसे जीवको समान कहोगे तो वेदान्त मतका अद्वैत बाद सिद्ध होगा,फिर जैन मतकानाना (अनेक) मानना न बनेगा दूसरा और भी सुनोंकि प्रत्यक्ष, आगम, अनुमान प्रमाणसे जीवोंकी -व्यवस्था जुदी २ दीखती हैं, फिर एक पक्षसे एक सरीखाकहना क्योंकर बनेगा, क्योंकि जुदी २ व्यवस्था दीखती है, कि एक जोवतो शुद्ध पर मात्मा आनन्दमयो ; जन्ममरण दुःखसे रहित सिद्ध अवस्थामें विराज मान है; दूसरा संसारी जीव कर्मके बसमें पड़ा हुआ जन्म,मरण करता है, उस संसारी जीवमें भी कोई नरकमें; कोई स्वर्गमें, कोई त्रियंवमें, Scanned by CamScanner
SR No.034164
Book TitleDravyanubhav Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanand Maharaj
PublisherJamnalal Kothari
Publication Year1978
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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