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________________ ६ तत्रभवप्रत्ययो नारक देवानाम् ॥२२॥ भवप्रत्यय अवधिज्ञान नारक और देवों को अर्थ तत्त्वार्थ सूत्र होता है । यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ॥२३॥ अर्थ - गुणप्रत्यय ( क्षायोपशमिक) अवधिज्ञान छ: प्रकार के हैं और वह मनुष्य और तिर्यंच संज्ञी पंचेन्द्रिय को होता है। ऋजुविपुलमती मनः पर्यायः ॥ २४ ॥ अर्थ - ऋजुमति और विपुलमति ये दो मन: पर्याय ज्ञान के भेद हैं । विशुद्धयपतिपाताभ्यां तद्विशेषः ॥ २५ ॥ अर्थ - विशुद्धि और अप्रतिपाती की अपेक्षा से इन दोनों में अन्तर है । विशुद्धि - क्षेत्र- स्वामि-विषयेभ्योऽवधि-मनःपर्याययोः ॥२६॥ अर्थ - विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी और विषय के द्वारा अवधि और मनःपर्यायज्ञान में अन्तर होता है । मतिश्रुतयोर्निबन्धः सर्व द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥ २७॥ अर्थ - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय सर्वद्रव्य होते हैं किन्तु उनकी सर्वपर्याय नहीं । रूपिष्ववधेः ॥२८॥ अर्थ - अवधिज्ञान का विषय सर्वपर्यायरहित केवल रूपी द्रव्य होते हैं ।
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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