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________________ तत्त्वार्थ सूत्र सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शन कालान्तर भावाल्प बहुत्वैश्च ॥८ ॥ अर्थ- सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व से भी सम्यग्दर्शन आदि विषयों का ज्ञान होता है। मतिश्रुतावधि - मन: पर्याय केवलानि ज्ञानम् ॥९॥ अर्थ - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान ये पाँच ज्ञान हैं । तत् प्रमाणे ॥१०॥ | अर्थ वह पाँचों प्रकार का ज्ञान दो प्रमाण रूप है आद्ये परोक्षम् ॥११॥ अर्थ - प्रथम दो ज्ञान (मति और श्रुत) परोक्ष प्रमाण हैं । प्रत्यक्षमन्यत् ॥१२॥ अर्थ - शेष तीन ज्ञान ( अवधि, मनःपर्याय और केवल) प्रत्यक्ष प्रमाण रूप हैं । मति, स्मृति: संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् ॥१३॥ अर्थ - मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध ये सब मतिज्ञान के पर्यायवाची नाम हैं, इनके अर्थ में कोई अन्तर नहीं है । तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमितम् ॥१४॥ अर्थ - वह (मतिज्ञान) इन्द्रिय और अनिन्द्रिय (मन) के निमित्त से होता है । अवग्रहेहापायधारणाः ॥ १५ ॥ अर्थ - मतिज्ञान के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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