SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ तत्त्वार्थ सूत्र __ अर्थ - लोकान्तिक देव नौ प्रकार के है - १. सारस्वत, २. आदित्य, ३. वह्नि, ४. अरूण, ५. गर्दतोय, ६. तुषित, ७. अव्याबाध, ८. मरूत और ९. अरिष्ट । विजयादिषु द्विचरमाः ॥२७॥ अर्थ - विजयादि चार अनुत्तर विमानों के देव द्विचरम होते हैं। औपपातिक-मनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ॥२८॥ अर्थ - औपपातिक और मनुष्य के अतिरिक्त सभी जीव तिर्यंच योनि वाले होते हैं । स्थितिः ॥२९॥ अर्थ - यहाँ से आयु का वर्णन शुरू होता है। भवनेषु दक्षिणाऽर्धा-ऽधिपतीनां पल्योपम-मध्यर्धम् ॥३०॥ अर्थ - भवनपतियों में दक्षिणार्द्ध के इन्द्रों की आयु डेढ़ पल्योपम होती है। शेषाणां पादोने ॥३१॥ अर्थ - शेष इन्द्रों की आयु पौने दो पल्योपम होती है। असुरेन्द्रयोः सागरोपम-मधिकं च ॥३२॥ अर्थ - दो असुरेन्द्रों की आयु क्रमशः एक सागरोपम और एक सागरोपम से कुछ अधिक होती है। सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ॥३३॥
SR No.034154
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages62
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy