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________________ अध्यात्मकल्पद्रुम अर्थ - "जिसप्रकार सिंह ने अपनी जाति के प्राणियों को साथ में लेकर तराया था उसीप्रकार कोई (सुगुरु) अपने जातिभाई (भव्यपंचेन्द्रिय) को साथ में लेकर इस संसारसमुद्र से तराते हैं, और जिसप्रकार शियाल अपनी जाति के भाइयों के साथ डूब मरा उसीप्रकार कोई (कुगुरु) अपने साथ सबको नरकादि अनंत सागर में डूबा देते हैं । अतएव ऐसे शियाल जैसे पुरुष तो न मिलें वही अच्छा है ।" पूर्णे तटाके तृषितः सदैव, भृतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः । कल्पद्रुमे सत्यपि ही दरिद्रो, गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ॥१५॥ अर्थ - "गुरुमहाराज आदि का संयोग होने पर भी जो प्राणी प्रमाद करता है वह पानी से भरे हुए तलाब के होने पर भी प्यासा है, (धन-धान्य से) घर भरपूर है फिर भी वह मूर्ख तो भूखा है और उसके पास कल्पवृक्ष है फिर भी वह तो दरिद्र ही है ।" न धर्मचिन्ता गुरुदेवभक्तिर्येषां न वैराग्यलवोऽपि चित्ते । ७६ तेषां प्रसृक्लेशफलः पशूनामिवोद्भवः स्यादुदरम्भरीणाम् ॥१६॥
SR No.034152
Book TitleAdhyatma Kalpadruma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunisundarsuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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