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________________ वैराग्यशतक है, बन्धुओं का वियोग होता है, पत्नी का वियोग होता है, एक मात्र जिनेश्वर भगवन्त के धर्म का कभी वियोग नहीं होता है ॥१२॥ अडकम्मपासबद्धो, जीवो संसारचारए ठाइ । अडकम्मपासमुक्को, आया सिवमंदिरे ठाइ ॥१३॥ अर्थ : आठ कर्म रूपी पाश से बँधा हुआ जीव संसार की कैद में रहता है और आठ कर्म के नाश से मुक्त हुआ जीव मोक्ष में जाता है ॥१३॥ विहवो सज्जणसंगो, विसयसुहाई विलासललियाई । नलिणीदलग्गघोलिर-जललव परिचंचलं सव्वं ॥१४॥ अर्थ : वैभव, स्वजनों का संग, विलास से मनोहर सुख-सभी कमल के पत्र के अग्रभाग पर रहे जलबिंदु की भांति अत्यन्त ही चंचल हैं ॥१४॥ तं कत्थ बलं तं कत्थ, जुव्वणं अंगचंगिमा कत्थ ? । सव्वमणिच्चं पिच्छह, दिटुं नटुं कयंतेण ॥१५॥ अर्थ : शरीर का बल कहाँ गया ? वह जवानी कहाँ चली गई । शरीर का सौंदर्य कहाँ चला गया ? काल इन सभी को तहस नहस कर देता है, अत: सब कुछ अनित्य है, ऐसा समझो ॥१५॥ घण कम्म पास बद्धो, भवनयर चउप्पहेसु विविहाओ। पावइ विडंबणाओ, जीवो को इत्थ सरणं से ॥१६॥
SR No.034151
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorPurvacharya Maharshi
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages58
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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