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________________ प्रशमरति खाने व पीने योग्य स्वादिष्ट वस्तुओं से युक्त स्वादिष्ट भोजन यदि जहरवाला हो तो वह खाने से अन्ततोगत्वा मारक ही बनता है, उसी तरह चापलूसी व विनय वगैरह से बढ़ी हुई सुन्दरता से और अत्यधिक राग से सेवित विषय सैकड़ों भवों की परम्परा में भी दुःखभोग की परम्परा करने वाले हैं ॥१०८-१०९॥ अपि पश्यतां समक्षं नियतमनियतं पदे पदे मरणम् । येषां विषयेषु रतिर्भवति न तान् मानुषान् गणयेत् ॥११०॥ अर्थ : कदम कदम पर नियत और अनियत मृत्यु को प्रत्यक्ष देखने पर भी जिन्हें विषयों में आसक्ति होती है उन्हें मानव नहीं मनना चाहिए ॥११०॥ विषयपरिणामनियमो मनोऽनुकूलविषयेष्वनुप्रेक्ष्यः । द्विगुणोऽपि च नित्यमनुग्रहोऽनवद्यश्च संचिन्त्यः ॥१११॥ अर्थ : मन के अनुकूल विषयों में, विषयों के परिणाम के नियम का बार-बार चिन्तन करना चाहिए (और) सर्वदा निर्दोष व बहुगुणयुक्त लाभ का विचार करना चाहिए ॥१११॥ इति गुणदोषविपर्यासदर्शनाद्विषयमूच्छितो ह्यात्मा। भवपरिवर्तनभीरूभिराचारमवेक्ष्य परिरक्ष्यः ॥११२॥
SR No.034150
Book TitlePrashamrati
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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