SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४. प्रमोद भावना धन्यास्ते वीतरागाः क्षपकपथगतिक्षीणकर्मोपरागास्त्रैलोक्ये गन्धनागाः सहजसमुदितज्ञानजाग्रद्विरागाः। अध्यारुह्यात्मशुद्धया सकलशशिकलानिर्मलध्यानधारामारान्मुक्तेः प्रपन्नाः कृतसुकृतशतोपार्जितार्हन्त्यलक्ष्मीम् ।१८७। स्रग्धरावृत्तम् अर्थ :- क्षपकश्रेणि के द्वारा जिन्होंने कर्म-शत्रुओं को नष्ट कर दिया है, साहजिक और निरन्तर उदय प्राप्त ज्ञान से जागृत वैराग्यवन्त होने से त्रिलोक में जो गन्धहस्ती के समान हैं, ऐसे वीतराग परमात्मा, जो अपनी आत्मशुद्धि से चन्द्रकला के समान निर्मल ध्यान धारा पर आरूढ़ होकर, पूर्वकृत सुकृतों से उपार्जित तीर्थंकर पदवी को प्राप्तकर मोक्ष के निकट जा रहे हैं, वे धन्य हैं ॥१८७॥ तेषां कर्मक्षयोत्थैरतनु-गुणगणैर्निर्मलात्मस्वभावैप्यं गायं पुनीमः स्तवनपरिणतैरष्टवर्णास्पदानि । धन्यां मन्ये रसज्ञां जगति भगवतस्तोत्रवाणीरसज्ञामज्ञां मन्ये तदन्यां वितथजनकथां कार्यमौखर्यमग्नाम्॥१८८॥ स्रग्धरावृत्तम् शांत-सुधारस ७३
SR No.034149
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy