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________________ उपदेशमाला नमिऊण जिणवरिंदे, इंदनरिंदच्चिए तिलोअगुरु । उवएसमालमिणमो, वुच्छामि गुरुवएसेणं ॥१॥ ___ शब्दार्थ : देवेन्द्र और नरेन्द्र (राजा) के द्वारा पूजित तथा तीनों लोकों के गुरु श्री जिनवरेन्द्र को नमस्कार कर तीर्थंकर, गणधर आदि गुरुजनों के उपदेश से मैं इस "उपदेशमाला" को कहूँगा ॥१॥ जगचूडामणिभूओ, उसभो वीरो तिलोयसिरितिलओ । एगो लोगाइच्चो, एगो चक्खू तिहुयणजणस्स ॥२॥ ___ शब्दार्थ : जगत् में मुकुटमणि के समान, श्री ऋषभदेव तथा त्रिलोक के मस्तक में तिलक समान श्री महावीर स्वामी हैं। उनमें एक तो जगत् में सूर्यसमान हैं और दूसरे त्रिभुवनजनों के लिए चक्षुरूप है ॥२॥ संवच्छरमुसभजिणो, छम्मासा वद्धमाणजिणचंदो । इअ विहरियानिरसणा, जएज्ज एओवमाणेणं ॥३॥ शब्दार्थ : श्री ऋषभदेव भगवान् ने एक वर्ष और जिनचन्द्र श्रीवर्धमान स्वामी ने छह महीने तक आहार पानी उपदेशमाला
SR No.034148
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdas Gani
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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