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________________ के निमित्त से (दूसरे को विषयभोग छोड़ते देखकर) विषयभोगों का त्याग कर देता है; जैसे जम्बूकुमार को देखकर प्रभव ने विरक्त होकर विषयभोग छोड़ दिये थे ॥३७॥ दीसंति परमघोरावि, पवरधम्मप्पभावपडिबुद्धा । जह सो चिलाइपुत्तो, पडिबुद्धो सुंसुमाणाए ॥३८॥ ___ शब्दार्थ : अत्यंत भयंकर और रौद्रध्यानी व्यक्ति भी (धर्मप्रवरों के) श्रेष्ठ और शुद्ध धर्म के प्रभाव से प्रतिबुद्ध (अधर्म को छोड़कर धर्म में जाग्रत) होते दिखाई देते हैं । जैसे चिलातीपुत्र को सुसुमा के निमित्त से प्रतिबोध प्राप्त हो गया था ॥३८॥ पुफियफलिए तह पिउघरंमि, तण्हा-छुहा-समणुबद्धा । ढंढेण तहा विसढा, विसढा जह सफलया जाया ॥३९॥ ___ शब्दार्थ : ढंढणकुमार अपने पिता के यहाँ बहुत फूलेफले थे, लेकिन मुनि बनकर जैसे उन्होंने तृषा (प्यास) और क्षुधा (भूख) समभाव से सहन की, वैसे ही सहन करने (सहिष्णुता) से सफलता मिलती है ॥३९॥ आहारेसु सुहेसु अ, रम्मावसहेसु काणणेसु च । साहूण नाहिगारो, अहिगारो धम्मकज्जेसु ॥४०॥ शब्दार्थ : बढ़िया आहार, रमणीय उपाश्रय (धर्मस्थान) या सुंदर उद्यान पर साधुओं का कोई अधिकार नहीं होता; उनका अधिकार तो केवल धर्मकार्यों में ही होता है ॥४०॥ उपदेशमाला
SR No.034148
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdas Gani
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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