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________________ ऐसे गौरवप्रद विशेषणों से महासतीओ की हार्दिक अनुमोदना भी की है। (१५) महोपाध्याय श्री यशोविजयजी ने अध्यात्ममतपरीक्षा नाम के महान ग्रंथ में आगम आदि शास्त्रसमूह एवं तर्को से स्त्रीनिर्वाण को प्रमाणित किया है । जिस में 'परमशीलश्रद्धादिगुणशालितया सुलसाद्या भगवतामपि प्रशस्याः' इत्यादि शब्दो से महासतीजीओ का परम सम्मान एवं गुणानुमोदन किया है। (१६) आज भी समस्त श्रमणगण प्रतिदिन दो बार प्रतिक्रमण में श्रमणसूत्र अंतर्गत 'साहुणीणं आसायणाए' एवं 'सावियाणं आसायणाए' इन पदों से 'मनवचन-काया से साध्वीजी या श्राविकाजी के प्रति कोइ भी आशातना हो गइ हो, तो उसका प्रायश्चित्त करते है, जिस के भीतर में उन के प्रति श्रमणगण का सम्मान ही निहित होता है। (१७) वर्तमान में श्रमण श्रीगुणहंसविजयजी ने 'विश्वनी आध्यात्मिक अजायबी' नाम के दो पुस्तक लिखे है। जिन में वर्तमानकालीन पूजनीय साधु-साध्वीजी भगवंतो की विशिष्ट साधना एवं विशिष्टगुणों का हृदयस्पर्शी प्रकाशन किया गया है, इस के माध्यम से एवं ऐसे अन्य प्रकाशनो के माध्यम से समस्त चतुर्विध संघ उन की भूरि भूरि अनुमोदना कर रहा है एवं अपने हृदय में उन के प्रति सम्मान भाव की वृद्धि कर रहा है। शंका - क्यां जैनविश्व में स्त्री सम्मान की अन्य भी बाते है ? समाधान - हाँ, यह तो शायद उस की झलक भी नहीं । इस विषय पर विराट ग्रंथ की रचना भी कम ही होगी। शंका - तो फिर मुझे जो भ्रम हुआ उस का क्या हेतु ? समाधान - अज्ञान । समाज में कई लोग ऐसे भी है, जिनके अंतर की भावना तो शायद प्रशस्त होती है । किन्तु अज्ञानवश केवल अपनी कल्पनाओ के आधार पर असत्यप्रसार भी करते है । शास्त्र में कहा है, कि यदि श्रमण भी बहुश्रुत न हो, तो उसे उपदेश देने का अधिकार नहीं है । सुंदरबुद्धीइ कयं बहुयं पि न सुंदरं होइ ॥ उपदेशमाला ॥ जो गीतार्थ नहीं वह प्रशस्त भावना से भी कुछ कहने करने जाये, वह अप्रशस्त हो सकता है। ऐसी व्यक्ति यदि अपनी भूलों का प्रायश्चित्त भी करना चाहे, तो वह दुष्कर १४०
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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