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________________ आज भी श्रमणगण उनके प्रति नतमस्तक हो जाते है। (६) १४४४ ग्रंथ कर्ता प.पू. श्रीहरिभद्रसूरि महाराजा ने साध्वीजी याकिनी महत्तरा का अपनी धर्ममाता के रूप में गौरवपूर्ण उल्लेख अपने ग्रंथो में कृतज्ञता एवं आदर भाव से किया है। (७) धारिणी साध्वीजी ने दो राजाओ के बीच समझौता करवा कर युद्धशांति का महान कार्य किया, उस का आवश्यकनियुक्तिटीका आदि शास्त्रो में आदरपूर्ण वर्णन है। (८) शास्त्रों में भरतक्षेत्र से महाविदेह में सीमंधरस्वामी के पास गयी हुई एक व्यक्ति का उल्लेख मिलता है, जिनका नाम है - यक्षा साध्वीजी । (९) अपनी माता साध्वीजी पाहिणी की आराधना की अनुमोदनार्थ कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने ३३ क्रोड श्लोक प्रमाण विराट साहित्य का सृजन किया । (१०) पाटण के अष्टापदजी मन्दिर में वि० सं० १२०५ की साध्वीजी देमतीजी गणिनी की मूर्ति बिरजामना है । मातर तीर्थ में वि० सं० १२९८ की साध्वीजी पद्मश्री की मूर्ति बिराजमान है। (११) साध्वीजी राजीमति ने मुनि रहेनेमिजी को उपदेश देकर संयम में स्थिर किया इस बात का गौरवपूर्ण वर्णन परम पावन श्रीदशवैकालिक आगमसूत्र आदि अनेकानेक शास्त्रो में किया गया है । (१२) श्रीधर्मलक्ष्मी महत्तरा भास ग्रंथ में उल्लेख है कि खंभात में श्रेष्ठिपुत्री मिलाप थी। जो दीक्षा लेकर प्रतिदिन १५० गाथा कंठस्थ करती थी । (१३) साध्वीजी के स्वाध्याय को सुगम बनाने के लिये साधुजी भी शास्त्रप्रतिलेखन का परिश्रम करते है, जैसे की पं. श्रीकीर्तिविजयजीने वि०सं० १६८७ कार्तिक शुक्ल १० के दिन देलवाडा में साध्वीजी श्रीकल्याणऋद्धि के लिये पाक्षिकसूत्र की प्रति का लेखन किया था । ऐसे अनगिनत उल्लेख मिलते है, एवं वर्तमान में भी संभवित विधा से ऐसे कार्य चालु है । (१४) स्त्री / साध्वीजी की मुक्ति नही हो सकती इस मत का खंडन करने के लिये शाकटायन आचार्यश्रीने स्त्रीनिर्वाण प्रकरण नाम के ग्रंथ का सृजन किया है, जिन में आगम आदि शास्त्रो के प्रमाण एवं तर्कबल से न केवल स्त्रीमुक्ति को सिद्ध किया है, किन्तु साथ साथ शीलाम्बुनिधिवेला, सुसत्त्वा, अनल्पधृतयः
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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