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________________ शंका - क्यां आगम सूत्र में भी ऐसा उल्लेख है ? समाधान - अवश्य है । परम पावन भी महानिशीथ सूत्र में कहा है - एत्थं च गोयमा ! जं इत्थीयं भएण वा, लज्जाए वा, कुलंकुसेण वा जाव धम्मसद्धाए वा तं वेयणं अहियासेज्जा, नो वियम्मं समायरेज्जा, से णं धण्णा, से णं पुण्णा, से य णं वंदा, से णं पुज्जा, से णं दट्ठव्वा, से णं सव्वलक्खणा, से णं सव्वकल्लाणकारया, से णं सव्वुत्तम-मंगलनिहि । सेणं सुयदेवता, से णं सरस्वती, से गं अंबहुडी, से णं अच्चुया, से णं इंदाणी, से णं परमपवित्तुत्तमा, सिद्धी मुत्ती सासया सिवगइ त्ति । हे गौतम ! जो स्त्री भय से, लज्जा से, कुल के अंकुश से या यावत् धर्मश्रद्धा से भी वासना की वेदना को सह करती है। मगर दुराचार नही करती, वह धन्या है, वह पुण्यवती है, वह वंदनीया है, पूजनीया है, दर्शनीया है, सर्वलक्षणसम्पन्ना है, सर्वकल्याणकारिणी है, सर्वश्रेष्ठ मंगलनिधिरूप है, श्रुतदेवता है, सरस्वती है, अम्बा है, अच्युता है, इंद्राणी है, परम पावन श्रेष्ठ सिद्धि है । वह मुक्ति है, वह शाश्वत शिवगति है। इस से भी अधिक नारीसम्मान और क्यों हो सकता है ? सर्वज्ञशासन निष्पक्षपात है, जहाँ गुण है वहाँ वेदन है । जहाँ गुण है वहाँ सम्मान और गौरव है । यदि गुणदृष्टि नहीं है तो नारीसम्मान भी एक तरह से उसका अपमान है। कैसे ? समजाता हैं - आझादी के दौरान एक कार्य चल रहा था - हरिजनउद्धार. उन्हें मानवीय अधिकार दिलाने के लिये जो सुधारक प्रयास करते थे, वह कहते थे - 'यह हरिजन है, उन्हे मंदिर में आने दो' । तब विनोबा भावे ने इस बात का विरोध करते हुए कहा - ऐसा कहो, कि 'यह मानव है, इसे मंदिर में आने दो ।' बात छोडी है, किन्तु उस का मर्म समजने जैसा है। यदि आप हरिजनत्व के आधार पर उनका भला करना चाहते हो, तो वास्तव में आप की दृष्टि में सम्मान नही, दया है । और दया हमेशा हीन पर ही होती है। तो आप ने उसे भले ही मंदिरप्रवेश का अधिकार दिया, पर हीन तो समजा ही । विश्व का मूल प्रश्न नारीसम्मान का है ही नहीं । मूल प्रश्न गुणो के प्रति उपादेयदृष्टि का एवं गुणसम्मान का है । इससे ही विश्व निश्चितरूप से सुखी बन सकता है। एक अन्य उदाहरण - कन्या भ्रूण हत्या के विरोध के आंदोलन का जो करुण भी है और हास्यास्पद भी । कन्या भ्रूण हत्या पाप है, तो भ्रण हत्या पाप नहीं? यह कहाँ का न्याय ? यदि भ्रूण हत्या को ही प्रतिबंधित कर दिया जाये, तो कन्या भ्रूण हत्या १३३
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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