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________________ समाधान - अवश्य की है । मूलशुद्धि ग्रन्थ में कहा है। चाउवण्णस्स संघस्स मज्झे सुव्वंति साविया । सइंसणेण नाणेण, जुत्ता सीलव्वएहि य ॥१७७॥ चतुर्विध संघ का एक प्रधान अंग है श्राविका । जो सम्यग्दर्शन से सम्यग्ज्ञान से एवं शीलव्रतो से विभूषित है । संवेगरंगशाला शास्त्र में कहा है किं पुण गुणकलियाओ महिलाओ दूरवित्थयजसाओ । तित्थयर चक्कि हलहर - गणहर सप्पुरिसजणणीओ ॥४४५६॥ सीलवईओ सुव्वंति, महीयले पत्तपाडिहेराओ। नरलोयदेवयाओ, चरमसरीराओ पुज्जाओ ॥४४५७॥ कई नारीयाँ गुणगण से शोभायमान होती है। जिन का विस्तृत यश दूर-सुदूर पहुंच जाता है। तीर्थंकर-चक्रवर्ती-बलदेव-गणधर जैसे महापुरुषो की जननी भी नारी हो होती है । शास्त्रों में अनेक शीलवती नारीयो का यशोगान है, जिन के श्रेष्ठ गुणों से आवर्जित होकर देवोने भी उनकी सेवा की है सचमुच, ऐसी गुणवंती नारी मनुष्यलोक में भी देवता की तरह सम्माननीय है। जो उसी भव में मोक्ष में जाती है, ऐसी चरमशरीरा नारी भी होती है, जो अवश्य पूजनीय है । ओहेण न वूढाओ, जलंत घोरग्गिणा न दड्डाओ । सीहेहिं सावएहि य, परिहरियाओ अपावाओ ॥४४५८॥ ऐसी शीलवती नारी के गुण के प्रभाव से नदी की बाढ भी उसे कष्ट पहुँचाने में निष्फल गई है । जाज्वल्यमान भयानक अग्नि भी उसे जला नही सका है। उन के निष्पाप चरित्र के प्रभाव से शेर और जंगली जनावरो ने भी उन्हें काट नहीं पहुँचाया है। यह तो केवल झलक है, ऐसे तो अनगिनत शास्त्रवचन है, जिन्होंने गुणवंती नारी की प्रशंसा है, जैसे की शान्तसुधारस ग्रंथ में कहा है या वनिता अपि यशसा साकं कुलयुगलं विदधति सुपताकम् । तासां सुचरितसञ्चितराकं, दर्शनमपि कृतसुकृतविपाकम् ॥१४-६॥ जो स्त्रियाँ अपने पीहर और ससुराल - दोनो कुल की कीर्तिपताका को अपने गुणो से लहराती है, सच्चरित्रयुक्त उन पवित्र स्त्रियों का दर्शन भी महान पुण्योदय से मिलता है। १३२
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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