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________________ शील की नय बाड़ "मेरी मपूर्णता होने पर भी एक यस्तु मेरे लिए सुसाध्य रही है। वह यह कि मेरेप स हजारों स्त्रियाँ सुरक्षित रही है। ऐसे प्रसंग मेरे जीवन में माए हैं, जब भमक बहिनों को, उनमें विषय-वासना होने पर भी ईश्वर ने उन्हें, अथवा पाहो मुझे बचाया है। यह ईयरी ही कुति है, ऐसा मैं शत-प्रतिशत मानता हूँ। इससे मुझे इस बात का जरा भी मभिमान नहीं। यह मेरी स्थिति मरणान्त तक कायम रहेकी ईश्वर से मेरी नित्य प्रार्थना रहती है। 4. "शुकदेव की स्थिति प्राप्त करने का मेरा प्रयन है । यह प्राप्त नहीं कर सका हूं। यह स्थिति पैदा हो तो वीर्यवान होते हुए भी मैं नपुंसक बनूं मौर स्खलन भसंभव हो। ... .. "पर ब्रह्मचर्य के विषय में जो विचार इधर में दर्शाये हैं, उनमें कोई न्यूनता नहीं, अतिशयोक्ति नहीं। इस प्रादर्श तक प्रयत्न से चाहे जो स्त्री-पुरुष पहुंच सकता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि इस मादर्श को मेरे जीते जगत या हजारों मनुष्य पहुंच जायंगे। इसे हजारों वर्ष लगन हों तो भले ही लगें, पर यह वस्तु सच्ची है, साध्य है, सिस होनी ही चाहिए। "मनुष्य को भभी तो बहुत मार्ग काटना है। अभी उसकी वृत्ति पशु को है। मात्र प्राकृति मनुष्य की है । ऐसा लगता है, जैसे हिंसा चारों भोर फैल रही है। असत्य से जगत भरा है। तो भी सत्य-अहिंसा धर्म के विषय में शंका नहीं, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य के विषय में समझो। "जो प्रयत्न करते हैं फिर भी जलते रहते हैं, वे प्रयत्न नहीं करते। जो अपने मन में विकारों का पोपण करते रहने पर भी केवल स्खलन नहीं होने देना चाहते, स्त्री-संग नहीं करना चाहते, उनके प्रति दूसरा अध्याय लागू पड़ता है। ये मिथ्याचारियों में गिने जायंगे। - "मैं अभी जो कर रहा हूँ, वह है विचार शुद्धि। "माधुनिक विचार ब्रह्मचर्य को अधर्म मानता है। इससे कृत्रिम उपायों से संतति को रोक कर विषय-सेवन का धर्म-पालन करना चाहता है। इसके सम्मुख मेरी मात्मा विद्रोह करती है। ... "विषयासक्ति जगत में रहेगी ही, पर जगत की प्रतिष्ठा ब्रह्मचर्य पर है और रहेगी (२१५-३६)" 2. इन पत्रों की प्रथा ने भी काफी बवंडर उत्पन्न किया। महात्मा गांधी को लिखना पड़ा : "साबरमती आश्रम की सदस्या प्रेमाबहन कंटक के नाम लिखी गई मेरी चिट्टियां भी मेरे पतन को सिद्ध करने के काम में लाई गई हैं। प्रेमाबहन एक ग्रंजएट महिला और योग्य कार्यकी है। वह ब्रह्मचर्य और इसी प्रकार के दूसरे विषयों पर प्रश्न पूछा करती थी। मैं उन्हें पूरे जवाब भेजता था। उन्होंने यह सोच कर कि ये जवाब सर्व साधारण के लिए भी उपयोगी होंगे, मेरी इजाजत से उन्हें प्रकाशित कर दिया। में उन्हें बिल्कुल निर्दोष और पवित्र मानता (8) औपचारिक मालिश और स्नान दक्षिण अफ्रिका में महात्मा गांधी स्त्री-पुरुषों की प्राकृतिक चिकित्सा किया करते । सेवाग्राम पाश्रम में स्त्री-पुरुष परस्पर रोगी की परिचर्या करते। स्वयं महात्मा गांधी स्त्रियों से मालिश करवाते और उनसे प्रौपचारिक स्नान लेते । मालिश कराते समय वे प्रायः नग्न होते । बहिन भी मालिश करतीं। यह प्रयोग भी भारतभूमि में नया ही कहा जायगा। इस छूट की भी प्रालोचना हुई । एक बार महात्मा गांधी ने कहा: . 'मालिश और प्रौपचारिक स्नान-ये बातें ऐसी हैं, जिनके लिए मेरे पास-पास के व्यक्तियों में डॉक्टर सुशीला नयर सब से अधिक योग्य हैं। उत्सुक व्यक्तियों की जानकारी के लिए यह बतला दूं कि ये काम तनहाई में कभी नहीं किये जाते। ये काम डंढ़ घंटे से भी अधिक देर तक होते रहते हैं, और इसके बीच में प्रायः सो जाता हूं"..'या दूसरे साथियों के साथ काम भी करता हूं।" मालिश और स्नान का कार्य अन्य बहिनें भी करतीं। R asi .. 'महात्मा गांधी ने अपनी इन प्रवृत्तियों को लक्ष्य कर लिखा : को "मेरे इस जीवन में कोई गोपनीयता नहीं है । कमजोरियां मुझमें भी हैं जहर । लेकिन अगर कामुकता की ओर मेरा झुकाव होता तो मुझ -बापुना पत्रो-५ कु. प्रेमाबहेन कंटकने पृ० २३५-४० . २-ब्रह्मचर्य (दू० भा०) पृ० २६isha p ata n i ३-वही पृ०२८ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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