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________________ भूमिका ४५ से यह भी कहा गया है— हमारे साहित्य में स्त्रियों का खामखा देवता के सहस वर्णन किया गया है। मेरी राय में इस तरह का चित्रण भी बिलकुल गलत है।" ऐसे साहित्य से जो हानि होती है, उसके बारे में वे कहते हैं, "कितने ही लेक स्त्रियों की माध्यामिक प्यास को शांत करने के बजाय उनके विकारों को जागृत करते हैं। नवीना यह होता है कि बेचारी कितनी हो भोली स्त्रियां यही सोचने में धरना समय बरबाद करती रहती हैं कि उपन्यासों में चित्रित स्त्रियों के वर्णन के मुकाबले में वे किस तरह अपने को सजा और बना सकती हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि साहित्य में उनका नख-शिख वर्णन क्या अनिवार्य है ? क्या आप को उपनिषदों, कुरान और बाइबिल में ऐसी चीजें मिलती हैं ? फिर भी क्या पता नहीं कि बाइबिल को अगर निकाल दें तो अंग्रेजी भाषा का भण्डार सुना हो जायगा ।... कुरान के अभाव में अरबी को सारी दुनिया भूल जायगी और तुलसीदास के प्रभाव में जरा हिन्दी की कल्पना तो कीजिए धानकल के साहित्य में स्त्रियों के विषय में जो कुछ मिलता है, ऐसी बातें आपको तुलसीकृत रामायण में मिलती है " टॉल्स्टॉय लिखते हैं---"मानव स्वभाव का वह कितना घोर पतन है जब मनुष्य पाशविक विकार को सिंहासन पर अभिषिक्त कर इसकी सहायक इन्द्रियों की तारीफों के पुल वांचता है पर धान के चित्रकार, सङ्गीतशास्त्री और सभी जिलाविद् यही करते हैं।" ब्रह्मचर्य की दूसरी बांड़ ने श्राज राष्ट्रीय महत्व ग्रहण कर लिया है। श्रृंगारपूर्ण कथाओं को उपस्थित करनेवाले चित्रकार, सङ्गीतधात्री, शिल्पकार, कथाकार, उक्यासकार एवं देश के जीवन की साम्यात्मक निति को हिला रहे हैं। राष्ट्र की शीत-नृति को कामुक कवाय से विनष्टकर रहे हैं। उनकी कृतियों को पढ़ने, देखने श्रीर सुननेवालों का जो श्रधःपतन हो रहा है, वह स्त्री कथा परिहार न करने का ही परिणाम है । यदि राष्ट्र में संयम की भावना को पुनः प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है और जिसे कोई अस्वीकार नहीं करता तो स्त्री कथा का त्रिविध कहिय्या न सुगियय्वा न चितिच्या" वर्जन मानव मात्र के जीवन में लाना आवश्यक है। रूप में राष्ट्र की रक्षा की दृष्टि से ऐसा साहित्य सर्जित न हो, इस भावना से महात्मा गांधी ने निम्न विचार दिये थे : "एक सोधी-सी कसौटी मैं आपके सामने रखता हूँ। उनके विषय में लिखते समय श्राप उनकी किस रूप में कल्पना करते हैं ? आपको मेरी सूचना है कि आप कागज पर कलम चलाना शुरू करें, उससे पहले यह खयाल कर लें कि स्त्री जाति श्रापकी माता है। और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आकाश से जिस तरह प्यासी धरती पर सुन्दर शुद्ध जल की वर्षा होती है, उसी तरह श्रापकी लेखनी से साहित्य बहने लगेगा। याद रखिए एक स्त्री धापनी पत्नी बनी उससे पहले एक रवी भाप की माता थी।" भी शुद्ध ते शुद्ध इस बाड़ से सम्बन्धित मल्लिकुमारी, मृगावती और द्रोपदी की कथाएँ परिशिष्ट-क में पृ० ८६,६७, ६५ पर दी हुई हैं । स्त्री के रूपादि के वर्णन को सुनने से किस तरह मोह उत्पन्न होता है, उसका हृदयग्राही वर्णन इन कथाओं में है । मल्लिकुमारी के लावण्य को कथा को सुन और चित्रपटों से जान कर उसे प्राप्त करने के लिए उसके पिता राजा कुम्भ पर भिन्न-भिन्न देशों के नृपतियों ने एक साथ पढ़ाई कर दी। दोनों चोर से बुद्ध छिड़ गया। मल्लिने नृपतियों की चढ़ाई की प्राशंका से पहले से ही अपने रूप-रंग से मिलती हुई एक स्वर्ण- प्रतिमा बनवा रखी थी। उसमें प्रति दिन भोजन डाला जाता जो सड़ता जाता था। वह प्रतिमा पेचदार ढकन से बंद होती थी । मल्लि ने अपने पिता से युद्ध बंद करने का अनुरोध किया । उन नृपतियों को निमंत्रित कर अपने महल में बुलाया प्रतिमा को मलिकुमारी समझ सब और भी विमुग्ध हो गये अव मल्लिकुमारी स्वयं उपस्थित हुई और प्रतिमा के ढक्कन को दूर कर दिया। महल दुर्गन्ध और बदबू से भर गया। सब ने अपने नाक ढक लिए । मल्लि ने पूछा“ऐसा क्यों ?” नृपों ने उत्तर दिया--"इस प्रतिमा में से भयङ्कर दुर्गन्ध निकल रही है।" मल्लि बोली - "मेरा यह शरीर, जिसके सौन्दर्य पर तुम १ - ब्रह्मचर्य (प० भा० ) पृ० १५७-१५८ २ -- ब्रह्मचर्य (प० भा० ) १५८-९ २-स्त्री और पुरुष ४-महाचर्य (१० भा०) १० १५३ श्री dwar Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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