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________________ ४० परत वृत्तं मा स्मर-पूर्व सेवित का स्मरण न करे। 2 ८—रत E - वत्स्येंद् मा इच्छ— भविष्य में क्रोड़ा करने का न सोचे । १० - इष्ट विषयान् मा जुजस्व - इष्ट रूपादि विषयों से मन को युक्त न करे । इन नियमों में १, २, ४, ५, ७, ८ तो ये ही हैं, जो श्वेताम्बर भागों में है। धन्य भिन्न है। वेद अथवा उपनिषदों में ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए ऐसे शृंखलाबद्ध नियमों का उल्लेख नहीं मिलता। स्मृति में कहा है- "स्मरण, क्रीड़ा, देखना, गुह्यभाषण, संकल्प, अध्यवसाय और क्रिया - इस प्रकार मैथुन आठ प्रकार के हैं। इन आठ प्रकार के मैथुन से अलग हो ब्रह्मचर्य की रक्षा करनी चाहिए।" स्वामीजी ने इस कृति में उत्तराध्ययन के दस समाधि स्थानों के अनुक्रम से बाड़ों का विवेचन किया है। १८- मूल कृति का विषय : अब हम मूल कृति के विषय पर कुछ प्रकाश डालेंगे । 106 ब्रह्मचर्य के क्षेत्र में वे जगद्गुरु थे में दिया गया है। पहली डाल में मङ्गलाचरण के रूप में पहिया की वेदी पर सर्वस्व त्यागकर विवाह के मंडप से लौट कर आजीवन ब्रह्मचर्यवास करनेवाले बाइसवें जैन तीर्थंकर श्ररिष्टनेमि भगवान की स्तुति की गई है। क्योंकि उन्होंने पूर्ण युवावस्था में विवाह करने से इन्कार किया। इनका जीवन-वृत्त परिशिष्ट - क कथा - १ राजिमती और परिष्टनेमि की कथा इतनी रसपूर्ण है कि उसने अनेक काव्य-कृतियों को जन्म दिया है। अपने विवाह के निमित्त से होने बाली पशुओं की घासन्न हत्या के विरोध और सहयोग में नेमिनाथ ने आजीवन विवाह न करने का व्रत लिया, यह इतिहास के पन्नों में अहिंसा के लिए एक महान बलिदान की कथा है। विवाह सम्पन्न होने के पूर्व ही नेमिनाथ था के लिए निकल पड़े थे अतः राजिमती कुमारी ही थी • फिर भी उस महाधन्या कुमारी ने पाणि ग्रहण का विचार तक नहीं किया और स्वयं भी ब्रह्मचर्यवास में स्थित हुई। इतना ही नहीं अपने प्रति मोह से विह्वल मुनि रथनेमि को साध्वी राजिमती ने एक बार ऐसा गंभीर उपदेश दिया कि उनका पुरुषार्थ पुनः जागृत हो गया और वे संयम में इतने दृढ़ हुए कि उसी भव में मोक्ष को प्राप्त हुए । गिरते पुरुषार्थ को इस प्रकार दृढ़ सम्बल देनेवाली नारियों में राजिमती का स्थान भी इतिहास के पन्नों में श्रद्वितीय है । उस समय का उनका उपदेश ठोकर खा कर गिरते हुए ब्रह्मचारी के लिए युग-युग में महान् प्रकाशपुज्ज का काम करेगा, इसमें सन्देह नहीं। १ - दक्ष मृति ७.३२ २-अनी ते की राह पर पृ० ५६ मङ्गलाचरण के द्योतक दोहों के बाद ढाल में ब्रह्मचर्य की सुन्दर महिमा है। ब्रह्मचर्य को कल्पवृक्ष की उपमा देकर उसके सारे विस्तार को अनुपम ढंग से उपस्थित किया है। 15 महात्मा गांधी कहते हैं---" ब्रह्मचर्य का सम्पूर्ण पालन करनेवाला स्त्री या पुरुष नितान्त निर्विकार होता है । अतः ऐसे स्त्री-पुरुष ईश्वर के पास रहते हैं । वे ईश्वर तुल्य होते हैं । जो काम को जीत लेता है, वह संसार को जीत लेता है और संसार सागर को तर जाता है"" सन्तॉलस्टॉय ने जिला है- "जितना हो तुम ब्रह्मचर्य के नजदीक जाओगे उतना ही अधिक परमात्मा की दृष्टि में प्यारे होगे और अपना अधिक कल्याण करोगे ४ ।" 777 भगवान महावीर ने कहा था- "जो ब्रह्मचारी होते हैं वे, मोक्ष पहुंचने में सब से आगे होते हैं ।" "जो काम से अभिभूत नहीं होते उन्हें मुक्त पुरुषों के समान कहा गया है । स्त्री परित्याग के बाद ही मोक्ष के दर्शन सुलभ होते हैं" ।" "विषयों में अनाकुल और सदा इन्द्रियों Fast ३० १३५ ४- स्त्री और पुरुष पृ० १५३ ५- देखिए १०६ शील की नव बाड़ M: 1000 les Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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