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________________ कथा-२७: सर्पदंश [इसका सम्वन्ध दाल ७ गाथा १२ (पृ०४२) के साथ है] किसी ग्राम में दो भाई रहते थे। वे किसान थे। एक दिन वे घास काटने के लिये खेत में गये। बड़ा भाई एक वृक्ष की छाया में आराम करने लगा और छोटा घास काटने में लग गया। घास में से एक सर्प निकला और उसने उस छोटे भाई को डंस लिया। वह घास काटने में इतना तल्लीन था कि उसे इसका कुछ भी पता न चला। बड़ा भाई वृक्ष के तले से यह दृश्य देख रहा था। ॐ कुछ समय के बाद, घास काट चुकने पर, छोटा भाई भी वृक्ष की छाया में आराम करने के लिये आया और घास का गट्ठर रखकर बैठ गया। उसके पैर से खून बह रहा था। बड़े भाई ने उससे खून बहने का कारण पूछा। उसने कहा, "भाई ! मुझे कुछ भी मालूम नहीं। सम्भवः है कि किसी जन्तु ने काट लिया हो, या खरोंच आ गयी हो।" बड़े भाई ने सर्पदंश की बात उससे छिपा ली। वे दोनों घर लौट आये और सुखपूर्वक निवास करने लगे। 3 कालान्तर में, एक दिन दोनों घर पर बैठे, बड़े आनन्द से, गप्पें लड़ा रहे थे। बातों ही बातों में बड़े भाई ने छोटे भाई से सर्पदंश की घटना कही। छोटा भाई घबरा गया और वह बारबार सर्प-दंश का स्मरण करने लगा। वह इस घटना से इतना चिन्तित हो गया कि वह मूच्छित होकर गिर पड़ा और तत्क्षण उसकी मृत्यु.हो गयी। जब तक किसान को सर्प-दंश की जानकारी न थी, वह स्वस्थ था, परन्तु ज्योंही उससे सर्प-दंश की बात कही गयी त्योंही उसका शरीर विप से व्याप्त हो गया और वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार भुक्त काम भोगों के स्मरण करने से वासना रूपी विष शरीर में व्याप्त हो जाता है और ब्रह्मचर्य का भङ्ग हो जाता है। कथा-२८. भूदेव ब्राह्मण . . [इसका सम्बन्ध ढाल ७ गाथा ९ (पृ०४७ ) के साथ है ] ..एक समय पूर्व परिचित भूदेव नामक ब्राह्मण ने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती से आग्रह किया कि आप जो भोजन करते हैं, वह भोजन एक दिन हमें भी करवाया जाय। बाणका अत्यधिक आग्रह देख चक्रवर्ती ने समस्त ब्राह्मण परिवार को खीर का भोजन करवाया। उस भोजन से ब्राह्मण को उन्माद चढ गया और उसने रात्रि में स्त्री, पुत्री, बहन व माता के साथ अकार्य किया। जब उन्माद उतरा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। अतः ब्रह्मचारी को कामोत्तेजक षड्रस भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। १-निशीथ सूत्र अ०२ के आधार पर २६ . Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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