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________________ कथा - २६ : Tagged and we fra Os TARTU BENE Page TH विष मिश्रित छाछ [ इसका सम्बन्ध ढाल ७ गाथा १३ ( पृ० ४२ ) के साथ है ] पार व्यापारी थे। वे बाहर घूम घूम कर व्यापार करते थे। किसी समय एक गाँव में पहुंचे वहाँ एक वृद्धा रहती थी। वह बाहर के लोगों को खाना और निवास देती थी और उसीसे वह अपनी आजीविका चलाती थी । वे चारों व्यापारी उसी वृद्धा के यहाँ पहुँचे और रात्रि का निवास भी उसीके यहाँ रक्खा । व्यापारियों को जाने की जल्दी थी, अतः सूर्योदय के पूर्व ही भोजन बनाने के लिए कहा। वृद्धा रात्रि में जल्दी उठी और अन्धेरे में दही को एक हाँड़ी में Antard लगी । जिस वरतन में वह दही मथ रही थी उसमें पहले ही से एक काला सर्प बैठा हुआ था । बुढ़िया ने ध्यान नहीं दिया और दही के साथ उसे भी मध डाला। सारी छाछ वियमयी हो गयी वृद्धा ने व्यापारियों को भोजन करा उन्हें विपमयी छाछ पीने के लिए दे दी । व्यापारियों ने वह छाछ पी ली और वहाँ से प्रस्थान कर दिया । प्रातः हुआ। अब बुढ़िया ने खाने के लिए वर्तन में से छाछ निकाली और देखा तो उसमें साँप के टुकड़े नजर आये। वह स्तब्ध हो गई। सोचा वे विचारे व्यापारी इस विषमयी छाछ को पीकर अवश्य मर गये होंगे। उसे बहुत पश्चाताप हुआ। Tro कालान्तर में वे व्यापारी घूमते घूमते पुनः उसी गाँव में उसी वृद्धा के यहाँ आये। वृद्धा ने उनको देखा और बहुत 'आश्चर्य चकित हो गई। वृद्धा ने कहा - " आप लोग जीवित हैं, यह जानकर मुझे अपार हर्ष हो रहा है। मैं तो यह दिन रात सोचती थी कि मेरी गलती से आप लोग अवश्य ही मर गये होंगे। किन्तु अचानक आप लोगों को जीवित देखकर मुझे बड़ा आनन्द हो रहा है।" वृद्धा की बात सुनकर व्यापारी कहने लगे - "माँ जी ! आप यह क्या कह रही है ? हम लोग आपकी बात का कुछ भी मतलब नहीं समझ सके ।” तव वृद्धा ने कहा- “बेटा ! आप लोग कुछ दिन पूर्व जब मेरे यहाँ ठहरे थे तब मैंने आप को मट्ठा पिलाया था। उसमें एक काला साँप मरा हुआ था। वह छाछ साँप के जहर बाली थी उसे पीकर भी आप जीवित हैं यस इसी का मुझे आश्चर्य है।" वृद्धा की बातें सुनते ही चारों व्यापारी चौंक पड़े। सर्प के जहर पीने की बात बार-बार उन्हें याद आने लगी। उनको अपने प्राण संकट में दिखाई देने लगे। मन की जो स्थिति हुई उससे उनके शरीर में विष व्याप्त हो गया और वे चारों मृत्यु को प्राप्त हुए। आ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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