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________________ परिशिष्ट-क : कथा और दृष्टान्त 18) के साथ है] कथा-११ कच्छप का दृष्टान्त ' (मनुष्य भव की दुर्लभता पर आठवाँ दृष्टान्त) [इसका सम्बन्ध दाल १ दोहा ७ (पृ०४) के साथ है] ___एक हजार योजन प्रमाणवाले एक तालाब में एक बहुत बड़ा कच्छप अपने परिवार सहित रहता था। तालाब के जलपर सेवाल आच्छादित थे। एक रात्रि को एक फल तालाब में गिरा जिससे सेवाल में छिद्र हो गया। गगनमंडल में चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं से प्रकाशमान थे। नक्षत्र सहित चन्द्र को देखकर कच्छप को महान् विस्मय हुआ। उसने अपने परिवार के सदस्यों को भी चन्द्रदर्शन कराना चाहा, इसलिए जल के अन्दर उन्हें बुलाने गया। जबतक वह कटम्बियों को लेकर ऊपर लौटा तबतक हवा के झोंके से पानी पर फिर सेवाल छा गए। कच्छप को पुनः चन्द्रदर्शन नहीं हुए और कुटुम्ब सहित निराश होना पड़ा। जिस प्रकार उस कच्छप के लिए पुनः चन्द्रदर्शन दुर्लभ हुआ उसी प्रकार मानव देहधारी प्राणियों को दुबारा मनुष्य जन्म पाना भी दुर्लभ है। युग का दृष्टान्त र ( मनुष्य भव की दुर्लभता पर नवा दृष्टान्त) [इसका सम्बन्ध ढाल १ दोहा ७ (पृ०४ ) के साथ है ] ___ यदि विश्व के सबसे बड़े समुद्र के पूर्व भाग में कोई देवता धूसरा डालें और पश्चिमी छोर पर उसी समुद्र में सामेला डालें तो उस धूसरे के छिद्र में सामेले का प्रवेश मुश्किल है। कदाचित् संयोगवश उनका सम्बन्ध मिल भी जाये माया हुआ मनुष्य-जावन मिलना अत्तन्त दुलमा ...... .............. जिन परमाणु का दृष्टान्तीय nagi ( मनुष्य भव की दुर्लभता पर दसवा दृष्टान्त) - [इसका सम्बन्ध दाल १ दोहा ७ (पृ० ४) के साथ है] ___एक बार एक देवता ने पत्थर की एक दीवार को अपने वज्र के प्रहार से चूरचूर कर दिया और फिर भस्म सम चूर्ण को एक पर्वत शिखर के ऊपर चढ़कर हवा में उड़ा दिया। यदि किसी व्यक्ति को इन परमाणुओं को फिर से एकत्र करने का कार्य दिया जाय तो यह करना असंभव है। इसी प्रकार एक बार मनुष्य जीवन पाकर खोदेने के बाद इसे फिर से पाना अत्यंत ही दुर्लभ है। उत्तराध्ययन सूत्र अ०३ गा०१की नेमिचन्द्रिय टीका के आधार पर। उत्तराध्ययन सूत्र अ०३ गा०१की नेमिचन्द्रिय टीका के आधार पर । उत्तराध्ययन सत्र अ०३ गा०१ की नेमीचन्द्रिय टीका के आधार पर। Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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