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________________ १ - नवमीं विभूषा न करणी विभूषा कीयां थायें वरत नों २- सर विभूषा ते करें तन वले रहें घठया त्यां लोपी ब्रह्मव्रत बाड़ ब्रह्मचर्य ३- सरीर नवमीं बाड़ नवमीं बाढ़ ब्रह्मचर्य नीं, विभूषा न करणी अंग ढाळ : १० दुहा नीं अंग । थकां, १ भंग ' ॥ विभूषा जे संजोगी ब्रह्मचारी तन ते कारण नहीं जे करें, सिणगार | मठाया, बाड़ ॥ करें, होय । सोभवे, कोय ॥ ४ – बाड़ भांग्यां किण विध रहें, अमोलक सील रतन । तिण सं ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य नां, किण विध करें जतन ॥ [ धीज करें १ - सोभा न करणी देह नीं रे लाल, नहीं करणो तन सिणगार | ब्रह्मचारी रे || पीठी उगणों करणो नहीं रे लाल, मरदन नहीं करणो लिगार | ० || ए नवमीं बाड़ ब्रह्म वरतनीं रे लाल 11 १ - त्रह्मचर्य की नवीं वाड़ यह है कि ब्रह्मचारी को विभूपा - शरीर - शृङ्गार नहीं करना चाहिए । विभूपा - शृङ्गार करने से व्रत भंग हो जाता है। २ - जो शरीर - विभूषा करते हैं, वे तन-शृङ्गार करते हैं तथा तड़क-भड़क से रहते हैं । वे ब्रह्मचर्यत की बाड़ को खण्डित करते हैं । ३ - शरीर की विभूषा करनेवाला ब्रह्मचारी शीघ्र ही संयोगी हो जाता है। ऐसा कोई कारण नहीं दिखलाई पड़ता जिससे ब्रह्मचारी तन को सुशोभित करे । ४ - बाड़ के भंग होने पर शील रूपी अमूल्य रत्न किस प्रकार सुरक्षित रह सकता है ? अतः इस ढाल में यह बताया गया है कि ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य की रक्षा किस प्रकार करे । ढाल सीता सती रे लाल ] १ - हे ब्रह्मचारी ! तुम्हें देह - विभूषा अथवा शरीर - शृङ्गार नहीं करना चाहिए। पीठी, उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए और न बैल आदि का मर्दन ही । यह ब्रह्मचर्यन्त की नवीं बाड़ है। Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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