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________________ ५० [ ६ ] ढाल गा० २- ७ : स्वामीजी ने इन गाथाओं में सरस आहार का दुष्परिणाम वताया है। व्यक्ति चार तरह के हो सकते हैं। एक युवक और शरीर से स्वस्थ, एक युवक पर शरीर से जीर्ण, एक वृद्ध पर शरीर से स्वस्थ और एक वृद्ध तथा शरीर से अस्वस्थ । स्वामीजी कहते हैं: स्वस्थ युवक जब सरस आहार करता है तो उसे शीघ्र पचा डालता है। आहार का परिणमन अच्छी तरह होने से इन्द्रियों का बल बढ़ता है। शरीर में कामोद्रेक होता है। अंगों में कुचेष्टा उत्पन्न होती है। अंग-कुचेष्टा के कारण मनुष्य ब्रह्मचर्य से पतित हो जाता है। परलोक में भी वह संताप को प्राप्त होता है। इससे रोग उत्पन्न होते हैं। तरुण वय में या वृद्धावस्था में जव शरीर स्वस्थ नहीं होता तब किया हुआ आहार हजम न होने से अजोर्णादि रोगों को उत्पन्न करता है। इससे अकाल में ही उसकी मृत्यु होती है। 'उत्तराध्ययन सूत्र' में कहा है : - उत्त० ३२ : ६३ जिम तरह रागातुर मछली- आमिष की वृद्धि के वश कोटे से विधी जाकर अकाल में मरण को प्राप्त होती है, उसी तरह जो रस में तीव्र वृद्धि रखता है, वह अकालमें ही विनाश को प्राप्त होता है। [[७] ढाल गा० ८ : स्वामीजी कहते हैं जब सरस आहार से तरुण की ऐसी हालत होती है, तब वृद्ध की इससे भी बुरी हालत हो तो उसमें आश्चर्य हो क्या ? सरस आहार से उसके शारीरिक कष्टों का कोई पार नहीं रहता । . स्वामीजी कहते हैं - जो प्रतिदिन सरस आहार करता है वह अकाल में मृत्यु प्राप्त करता है. धर्म को खोता है और इससे अनन्त संसारी होता है, अर्थात् ब्रह्मचर्य का भङ्ग कर वह अनन्त काल तक जन्म-मरण करता है। स्वामीजी की इस गाथा का आधार निम्न आगम वाक्य है : दुबदही विगईओ आहारे रसेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालिये पावइ से विणासं । रागाउरे वडिसविभिन्नकार मच्छे जहा आमसभोगगिद्धे ॥ [८] ढाल गा० ६: - उत्त० १७ : १५ जो दूध दही आदि विगय का बार बार आहार करता है और तप कर्म से विरत रहता है उसे पापी श्रमण कहा गया है। [8] ढाल गा० १०: भूदेव ब्राह्मण की कथा के लिए देखिए परिशिष्ट-क कथा २८ अभिक्सर्ग । अरएय सवोकम्मे, पावसमणि तिच्चाई ॥ [१०] ढाल गा० ११ : मंगू आचार्य की कथा के लिए देखिए परिशिष्ट-क कथा २९ शील की नव बाड़ [११] ढाल गा० १२ : सैलक राजर्षि की कथा के लिए देखिए परिशिष्ट-क कथा ३० कुण्डरिक की कथा के लिए देखिए परिशिष्ट -क कथा ३१ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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