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________________ सातमी बाड़ : ढाल ७: गा०६-१५ MO -चक्रवर्ती के घर के सरस आहार के सेवन से भूदेव नामक ब्राह्मण ने लन्ना छोड़ दी और काम में व्याकुल होकर अपनी बहन-बेटी से दुष्कृत्य किया। . . ... १०-सरस आहार में आसक्त मंगू नामक आचार्य मरकर व्यन्तर योनि में पैदा हुआ। सरस आहार प्रहण कर उसने इस प्रकार. अपने संयम के. " पीछे धूल उड़ाई। ६-चक्रवत नी रसवती भोगवे, भूदेव ब्राह्मण छोडी लाजो रे। काम विटंवा तिण लही, बेन बेटी सूं कीयों अकाजो रे ॥ए०॥ १०–सरस आहार तणों लपटी घणों, मंगू आचार्य तेहो रे। मरने गयों व्यंतरीक में, . संजम लारें उडाई खेहो रे ॥०॥ ११-वले सेलग राय रिषीसरु, ... सरस आहार तणो हुवों निधी रे। .. ने जिम्या वस पडीये थकें, किरीया अलगी घर दी रे " ॥०॥ १२-कंडरीक रस लोलपी थकों, पाछो घर में आयो रे। भारी आहार सं रोग उपज मुंओ, पडीयो सातमी नरक में जायो रे "ए०॥ १३–इत्यादिक बहू साध ने साधवी,. लोपी ने सातमी बाड़ो रे। ब्रह्मचर्य वरत खोय. ने, गया जमारो हारो : रे "ए०॥" ११-राजर्षि शैलक सरस आहार में गृद्ध हुआ। जिह्वा के वशीभूत होकर उसने अपनी क्रिया को अलग धर दिया। ____१२-कुण्डरीक रसलोलुप होकर पुनः घर में आ बसा। भारी सरस आहार करने से उसके । शरीर में रोग उत्पन्न हुए और मरकर वह सातवीं .. नरक में गया। १३-इस प्रकार अनेक साधु-साध्वियों ने सातवीं वाड़ का उल्लंघन कर ब्रह्मचर्य व्रत को खो दिया और मानव जन्म को हारकर चल बसे। १४-सनीपातीयो दध मिश्री पोये, तो सनीपात वधतो देखो रे । ज्यू ब्रह्मचारी ने सरस आहार सं,. विकार वर्षे छ वशेखो रे "ए०॥ १४-सन्निपात के रोगी को जिस प्रकार द्धमिश्री का आहार करने से रोग बढ़ जाता है, उसी प्रकार सरस आहार करने से ब्रह्मचारी के विकार की विशेष रूप से वृद्धि होती है। १५-इम .....सांभल.. ब्रह्मचारीयां, . -नित भारी म करजो आहारो रे।- सील वरत सुध पाल ने, वा गमण निवारो रे ॥ए०॥ . १५-ऐसा सुनकर हे ब्रह्मचारियो ! नित्य भारी सरस आहार मत करो। शीलबत का शुद्ध पालन, कर आवागमन से मुक्त होवो। Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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