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________________ सातमों वाड़ नित नित अति सरस आहार ने वरन्यों सातमी बाड़ ढाल ८ ह जार १-नित नित अति सरस आहार में, वरज्यों सातमी बाड़ । ते ब्रह्मचारी नित भोगवे, तो वरत ने हुवें विगाड ' ॥ १-सातवीं वाड़ में ब्रह्मचारी को नित्य प्रति अति सरस आहार करने का वर्जन किया है। प्रतिदिन सरस आहार के उपभोग से ब्रह्मचर्य व्रत को क्षति पहुंचती है। २-प्रतादिक सं पूरण भस्यों, एहवाँ भारी आहार । ते धातू दीपावें अति घणी, तिण वर्षे , विकार ॥ २-घृतादि से परिपूर्ण गरिष्ठ आहार अत्यधिक धातु-उद्दीपन करता है, जिससे विकार की वृद्धि होती है। ३-खट्टे, नमकीन, चरपरे और मीठे भोजन तथा जो विविध प्रकार के रस होते हैं, उनका जिह्वा आस्वाद लेती है। ३-खाटा खारा चरचरा, वले मीठा भोजन जेह । वले विविध पणे रस नीपजें, ते रसना सब रस लेह ॥ ४-जेहनी रसना बस नहीं, ते चाहें सरस आहार'। ते वरत मांगे भागल हुवे, खोवें ब्रह्म वरत सार' ॥ ४-जिसकी रसना वश में नहीं, वह सरस आहार की चाह करता रहता है। परिणाम स्वरूप व्रत का भंग करके वह भ्रष्ट होता है और सारभूत ब्रह्मचर्य व्रत को खो देता है। ढाल [हवे तो करु' साध ने वंदना] १-कवलां करें आहार उपारतां, १-प्रास उठाते समय जिससे घृत बिन्दु झर घ्रत विन्दु मरतों आहार भारी रे। रहे हों, ऐसा सरस आहार ब्रह्मचारी नित्य प्रति एहवो आहार सरस चांप २ ने, तर लूंस-ठूस कर न करे। नित २ न करें ब्रह्मचारी रे | हे ब्रह्मचारी ! तू इस सातवीं बाड़ का लोप न ए बाड़ म लोपो सातमीं ॥ E % NTERESEAca Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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