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________________ ४२ शील की नव बार ११-जहर सहीत चास पोये चालीयां, त्यांरो वांकोई न हुवाँ वाल रे । त्यांने घणां वरसां पछे कह्यो, तिण सं मरण पांम्यो ततकाल रे " ॥छ०॥ ११-वृद्धा के पुत्र ने विष युक्त छाछको पीकर, प्रस्थान किया किन्तु उसका याळ मी याँका न हुआ। पर, बहुत वर्षों के बाद जय छाछ में जहर होने की बात उसे बताई गई तब स्मरण मात्र से उसके शरीर में तुरंत विप व्याप्त हो गया और वह मर गया। १२-भाई को सर्प ने डस लिया, यह देखकर भी उसने अपने भाई को इसकी सूचना नहीं दी। जिस दिन उसको सर्पदंश की जानकारी दी गई, आघात के कारण उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। १३-जहर की याद दिलाने से अचानक असमाधि को प्राप्त कर उन लोगों की मृत्यु हो गई। इसी तरह काम-भोगों का स्मरण करने से ब्रह्मचारी ___ शील से दूर हो जाता है। १२-भाई ने पवन झंव्यों देखनें, भाई ने न जणायों ताय रे । जणायों जिण दिन धसकों पडे, ततकाल छोडी तिण काय रे ॥छ०॥ १३.-ए मुंआ जहर याद अणावीयां, पांमी अणचितवी असमाध रे। ज्यं भांगे ब्रह्मचारी सील सं, काम भोग में कीधां याद रे ॥छ०॥ १४-काम भोग ने याद कीयां थकां, संका कंखा उपजे मन मांय रे । सील पालू के पालू नहीं, वले जावक पिण भिष्ट थाय रे ॥छ०॥ १५–इम. सांभल में नर नारीयां, मत लोपो छठी वाड़ रे।। तो सील वरत सुध नीपजे, तिण सं हुवे खेवो पार रे ॥छ०॥ १४-काम-भोगों को याद करने से मन में शंका, कांक्षा, शील का पालन करूँ या नही-ऐसी विचिकित्सा उत्पन्न होती है और फिर वह अपने व्रत से समूल भ्रष्ट हो जाता है। १५ हे स्त्री-पुरुपो ! उपर्युक्त बातों को सोचकर छठी बाड़ का उल्लंघन मत करो। ऐसा करने से शुद्ध शीलवत निष्पन्न होगा जिससे तुम्हारा बेड़ा पार हो जायगा। टिप्पणियाँ [१] दोहा १-२ : स्वामोजी की इस छठी बाड़ की व्याख्या का आधार आगम के निम्न स्थल हैं: नो निरगथे पुष्वरय पुव्वकीलिय अणुसरित्ता हवइ .... -उत्त० १६ : ६ -निर्ग्रन्थ स्त्री के साथ भोगी हुई पूर्व रति और पूर्व क्रीड़ा का स्मरण न करे। हासं कि रइ दप्प, सहसावित्तासियाणि य । बम्भचेररओ थीणं नाणुचिन्ते कयाइ वि ॥ in -उत्त०१६:६.. Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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