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________________ ही बाड़: ढाल ७: गा०४-१० ४-हाथ-पांव से सुकुमार कोमलांगी तथा सुख-स्पर्श-वाली स्त्री से पूर्व में की गई क्रीड़ा का मन में चिंतन नहीं करना चाहिए। ५-स्त्री के साथ भोगे गये शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पाँच प्रकार के काम-भोगों का स्मरण करना उचित नहीं। .. ६ स्त्री के साथ खेले गये सार-पासा, सोंगटा, . जुवा आदि अनेक खेलों का भी स्मरण नहीं करना चाहिए। -४-हाथ पग सुखमाल नारी तणा, सुखमाल सरीर सुख दाय रे। एहवी अस्त्री सं कीला करी, ते चीतारें नहीं मन मांय रे ॥छ०॥ ५-सब्द रूप गन्ध रस ने फरस, पांच परकार नां काम भोग रे । ते तो अस्त्री संघातें भोगन्या, त्यांने याद करणा नहीं जोग रे ॥छ०॥ ६-रम्या सारी पासा सोगटादिक, जूवटादिक संमत अनेक रे। ते अस्त्री. संघाते. रांमत. करी, त्यांने याद न करणी एक रे । ७–सन्द सुणीयां भांगे बाड़ पांचमी, रूप सूं चोथी बाड़ विगाड रे । फरस सूं भांगे बाड़ तीसरी, अस्त्री कथा सूं दजी वाड़ रे ॥छ०॥ ८–एक याद करें यां माहिलों, तिण सं भांगे छठी बाड़ रे। तो सगलाई याद कीयां थकां, ब्रह्म वरत में हुवें बिगाड रे ॥छ०॥ ६-मन गमता काम भोग भोगव्या, तिण सं हरषत हुवें संभाल रे। तिण बाड़ सहीत वरत खंडीया, पाणी किम रहें फूटां पाल रे' ॥छ०॥ –कामोद्दीपक शब्द सुनने से पांचवीं बाड़, रूप देखने से चौथी बाड़, स्पर्श से तीसरी बाड़ तथा स्त्री-कथा से दूसरी बाड़ भङ्ग होती है। ८-पूर्व में भोगे हुए शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श आदि में से एक का भी स्मरण करने से छठी बाड़ भङ्ग हो जाती है। इन सब को याद करने से ब्रह्मचर्य-व्रत को क्षति पहुंचती है। ६-पूर्व में भोगे हुए मनोरम काम-भोगों को याद कर जो हर्षित होता है उसने बाड़ सहित ब्रह्मचर्य-व्रत का खण्डन किया है। बांध के टूट जाने पर पानी कैसे रुका रह सकता है ? उसी प्रकार बाड़ के खण्डित होने पर ब्रह्मचर्य-व्रत कैसे सुरक्षित रह सकता है ? १०-जिनरिख ने पूर्व में भोगे हुए काम-भोगों का स्मरण कर रयणादेवी से प्रीति की। इससे यक्ष ने उसको अपनी पीठ से फेंक दिया और रयणादेवी ने उसको बुरी तरह से मार डाला। १०-पर्वला काम भोग चीतार ने, कीधी रेणा देवी सं पीत रे। जब जिन रिष ने जप न्हांखीयों, रंणा देवी मास्यों वेरीत रे ॥छ॥ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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