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________________ ३८ २ – भीत परेच ताटी आंतरें रे लाल, - रात । त्र० । अस्त्री पुरष रहिता हुवें तिहां कुण २ दोषण उपजे रे लाल, ते सांभलजे चितलाय | ब्र० बा० ॥ कांम । ब्र० । ३ – केल करें निज कंत सूं रे लाल, ते बोलती जगावें छे कुई सन्द करें तिहां रे लाल, रुदन सब्द करें तिण ठांम । त्र० बा० ॥ ४ – कोयल जिम बोलें कंत सूं रे लाल, गावें मधुरें साद । ब्र० । काम बसें हडि २ हसें रे लाल, बोलती करें उनमाद । प्र० बा० ॥ ५ - वले थणित क्रंदित सब्द तिहां रे लाल, वले विलपति सब्द हुवें तां । त्र० । तिहां रहितां एहवा सब्द सांभलें रे लाल, जब चल जायें तुरत परिणांम २ | ब० बा० ॥ R ६ - गाज तण सब्द सुणी रे लाल, रित पांमें पपहीया मोर । त्र० । यं भोग स रा सब्द सांभल्यां रे लाल, लागें वरत ने खोड | ब्र० बा० ॥ 9- इम सांभल ने रहिवो नहीं रे लाल, सन्द पड़े तिहां कांन । प्र० । ए पांचमी बाड़ सुध पालीयां रे लाल, पांमें मुगति निधांन | त्र० बा० ॥ शील की नव बाड़ २ – जहाँ पर्दा या टाटी की ओट में स्त्री-पुरुष रात में रहते हों वहाँ रहने से कौन-कौन से दोप उत्पन्न होते हैं, उसका वर्णन करता हूँ । ध्यानपूर्वक सुनो। ३ - स्त्री अपने प्रियतम से क्रीड़ा करती है और शब्दों से उसे कामोत्तेजित करती है। वह कभी कूजित - शब्द करती है और कभी रुदन- शब्द । ४ - वह कभी कोयल की तरह मधुर आलाप करती है और कभी मधुर शब्दों में गाती है । काम के वशीभूत होकर वह कभी अट्टहास करती है और कभी मदमत्त शब्द बोलती है । % ५ - इसी प्रकार वहाँ स्थभित, क्रन्दित और विलापात के शब्द होते हैं। ऐसे स्थान पर रहने से ब्रह्मचारी के कानों में उपर्युक्त शब्द पड़ते हैं और उसके भाव विचलित हो जाते हैं। ६- जिस प्रकार घन-गर्जन सुनकर मोर और पपीहा रति को प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार भोगदोष लगता है। समय के कामोद्दीपक शब्दों को सुनने से व्रत में केशवर यह सुनकर, जहाँ कानों में शब्द पड़ने की संभावना हो वहाँ ब्रह्मचारी को नहीं रहना चाहिए । जो इस पाँचवी "बाड़ को शुद्ध रूप से पालन करता है वह परम गति मोक्ष को पाता है। Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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