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________________ प्रथम बाड़ : ढाल : २ गा०४-८ ४-हाथ पांव छेदन कीया, कांन नाक छेद्या तास हो । ७० ते पिण सो वरस नी डोकरी, रहिवों नहीं तिहां वास हो ॥. ४-जिसके हाथ, पैर, कान, नाक कटे हों, ऐसी सौ वर्ष की विकलांगी वृद्धा भी जहाँ रहती हो वहां ब्रह्मचारी का रहना कल्प्य नहीं। ___ यह ब्रह्मचर्य-व्रत की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे। ५-सझ. सिणगार देवांगणा, आई चलावण तास हो । ब्र. तिण आगे तो चलीयों नहीं, तो ही रहिणों एकंत वास हो ॥७० -सोलह शृङ्गार से सुसज्जित देवाङ्गना विचलित करने आये और उससे भी जो पुरुष विचलित न हो उसे भी एकान्त स्थल में ही वास करना चाहिए। यह ब्रह्मचर्य-व्रत की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे। ६-अस्त्री हुवे तिहां वासो रहे, ६–जहाँ स्त्री रहती है वहां ब्रह्मचारी के रहने कदा चल जाओं परिणाम हो । बामणो से संभव है कि कदाचित् उसका मन विचलित हो जब दिढ रहिणों दोहिलों, जाय | उस हालत में दृढ़ रहना मुश्किल हो जाता है मिष्ट हुवें तिण ठाम हो ॥७० और वह उस स्थान पर ही भ्रष्ट हो जाता है। यह ब्रह्मचर्य-व्रत की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे। ७-सीह गुफावासी जती", रहों वेस्या चित्रसाल हो । व. तुरत पस्यों वस तेहन, गयो देस नेपाल हो ॥ ब्र० ७-सिंह-गुफावासी यति वेश्या की चित्रशाला में आकर ठहरा तो वह भी तुरंत उसके वश . में हो गया और अपनी वासना की तृप्ति के लिए कम्बल लाने नेपाल देश गया। .. यह ब्रह्मचर्य-व्रत की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे। ameriIHINDISEMESTERSTA unismakarma- mariomarathi wwyerHTR R ८-कुल बालूरो" साध थो, तिण भाग्यो वरत रसाल हो । ७० कोणक री गणका वस पस्यों, ते रुलसी अनंतो काल हो ॥७० ८-कुल बालुड़ा नामक एक साधु था । कोणिक की गणिका के वशीभूत हो उसने उत्तम व्रत को भंग कर दिया जिसके कारण वह अनन्त काल तक संसार में परिभ्रमण करेगा। यह ब्रह्मचर्य-व्रत की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे। arateam की Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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