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________________ १२ ७- विण संका थी ओगुण उपजे, पां लोक | अछत्तो आल सिर, वले हुर्वे वरत पिण फोक ॥ आवें ८ - तिण सूं ब्रह्मचारी रहिणों छें भणी, एकंत ४ । ..हि कुण-कुण जायगां वरजवी, ज ते मतिवंत " ॥ NE 72 S १ - भाव धरी नित पालीयें, गिरउ ब्रह्म चरत सार हो । ब्रह्मचारी जिण थी सिव सुख पांमीयें, तूं बाड़ म खंडे लिगार हो । ब्रह्मचारी आ पेहली बाड़ ब्रह्मचर्यनी* ॥ २- मंजारी कूकड़ मूसग कुसल संगत मोर थी किहां घांटी मरोड़ ढाल [ नणदल नी देशी ] रमें, हो । ब्र० तेहनें, हो ॥ त्र० शील की नव बाड़ ७ — कारण यह है कि उससे अवगुण उत्पन होते हैं। लोग शंका- प्रस्त होते हैं। बिना कारण सिर पर कलंक आता है और व्रत का भी विनाश हो जाता है। -अस्त्री पसु निपुंसक जिहां बसे, तिहां रहिवो नहीं वास हो । ० तेहनीं संगत वारीए, वरत न करें विणास हो ॥ त्र० ८ - अतः ब्रह्मचारी को एकान्त स्थान मैं रहना कल्प्य है । ब्रह्मचारी को किन-किन स्थानों का वर्जन करना चाहिए, उनको मैं कहता हूँ। बुद्धिमान् ध्यानपूर्वक सुनें । 315 .१ - हे ब्रह्मचारी ! तीव्र भावना के साथ ब्रह्मचर्य - व्रत का पालन कर । ब्रह्मचर्य त सव व्रतों में महान् और सारपूर्ण है। तू ब्रह्मचर्य की इस बाड़ को, खण्डित मत कर, जिससे कि तुझे शिव-सुख की प्राप्ति हो । यह ब्रह्मचर्य की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे । २ - हे ब्रह्मचारी ! चूहे, मोर और मुर्गे यदि बिल्ली के साथ खेल खेलते हैं तो वे सुरक्षित कैसे रह सकते हैं ? बिल्ली गर्दन मरोड़ कर उन्हें मार डालती है। यह ब्रह्मचर्य की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे । | ३ हे ब्रह्मचारी ! जहाँ स्त्री, पशु, नपुंसक वास करते हों उस स्थान में तुम मत रहो । ब्रह्मचारी ! उनकी संगति से दूर रहो, क्योंकि उनकी संगति ब्रह्मचर्य व्रत का विनाश करती है । यह ब्रह्मचर्य की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे । Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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