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________________ शील की नव बार ६-जीव विमासी जोय तं, विषय म राच गिवार । थोड़ा सुखां रे कारणे, मूरख घणा म हार ॥ ६ हे जीव ! तू विचार कर देख। हे मर्ज। विषय में रुचि मत कर। हे मूढ़ ! थोड़े वैषयिक सुखों के लिए बहुत सुखों को मत खो । ७–दस दिष्टंते दोहिलो, लाधो नर भव सार । सील पालो नव बाड़ , ज्यू सफल हुवे अवतार ॥ ७-दस दृष्टान्तों ५ के अनुसार दुर्लभ यह सार मानव देह तुम्हें मिली है। नौ बाड़ सहित ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर, जिससे कि तुम्हारा - जन्म सफल हो। ८-सील माहे. गुण अति घणा, . ते पूरा कह्या न जाय । - थोड़ा सा . परगट करू, ने सुणजो चित ल्याय ॥ ८-शील में बहुत गुण हैं, उनका पूरा वर्णन करना शक्ति के बाहर है। फिर भी थोड़ा सा वर्णन करता हूँ, चित्त लगाकर सुनो। [मन मधुकर मोहो रह्यो] १-सीयल सुर तरुवर सेवीये, __१-शील रूपी कल्पवृक्ष की आराधना कर। ते वरतां माहे गिरवो छै एह रे। यह व्रत सब व्रतों में श्रेष्ठ है । शील से मोक्ष - सीयल सं "सिव सुख पांमीये, सुख की प्राप्ति होती है, जिसका कभी अन्त, नहीं . त्यां सुखां रो कर्दै नावे छेह रे॥. होता। सीयल सुर तरुवर सेवीये ।।आँ० २-सीयल मोटो सर्व वरत - में, २-शील सब व्रतों में महान है, ऐसा जिनेश्वर, ते- भाग्यो छै श्री भगवंत रे। भगवान् ने कहा है। जिन्होंने सम्यक्त्व, सहित . ज्यां समकत सहीत वरत पालीयो, शीलव्रत का पालन किया है उन्होंने संसार का अंत त्यां कीयो संसार नों अंत रे ॥सी.. कर डाला। 1ne 16 ३-जिण सासण- वन अति भलो, . -ते. नंदण वन अनुसार रे। जिणवर वनपालक तेह में ते करुणा रस भंडार रे॥ सी० - ३–जिन-शासन नन्दन वन के समान अत्यन्त सुरम्य उपवन है, जिसके रक्षक करुण रस के भाण्डार स्वयं जिनेश्वर हैं। रामा Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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