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________________ १ – श्री नेमीसर प्रणमं उठ बावीसमां जिण ब्रह्मचारी २ – सुंदर चरण जुग, परभात | अपछर सम विद्यु भर जोबन में छोड़ी राजल —कोड़ रसना जगत गुर, विख्यात ॥ सारिखी, राजकुमार । जुगति सूं, नार ॥ पालीयो, जिण THES दूधर धरतां तेह तणां गुण भव जल वरणव्यां, छेह ॥ केवली गुण करें, सहस वणाय । तोही ब्रह्मचर्य नां गुण घणां, पूरा कह्या न जाय ॥ BY काया थई, ही न मूर्के आस । वरत घरें, ५ – गलित पलित FOR तरुण पर्णे जे बलीहारी वास ॥ दुहा १ – मैं प्रातः उठकर श्री नेमीश्वर भगवान् के चरण-युगल को नमस्कार करता हूँ, जो वाईसवें जगद्गुरु — तीर्थंकर और विश्वविख्यात ब्रह्मचारी थे । २–राजकुमार नेमिनाथ ने पूर्ण युवावस्था में युक्तिपूर्वक अप्सरा के समान सुन्दर और विद्युत के समान तेजस्विनी राजुल कुमारी ( राजिमती ) का परित्याग किया । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन गुण-गान से जीव जन्म ३ – जिन्होंने दुर्घर किया, ऐसे महापुरुष के मरण रूपी समुद्र का पार पाता है।. ४ -करोड़ों केवली सहस्र - सहस्र जिह्वाओं से ब्रह्मचर्य के गुणों का गान करें तो भी उसके इतने अधिक गुण हैं कि उनका पूरा वर्णन नहीं किया जा सकता । ५-काया जीर्ण-शीर्ण हो जाती है तो भी आशा नहीं छूटती । जो तरुण अवस्था में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करते हैं, मैं उनकी बलिहारी जाता हूँ । Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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