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________________ १४ भूमिका minamainamain रूप रंभा सारिषी मीठा बोली । नारि ।। रूप रंभा सारिपी रे, बले मीठायोली हुवे नार।। तौ किम जोवे एहवी तो भर योवन त धारि सुना०॥६॥ ते निजर भरेनें निरखता रे, वरत ने हो। विगाड ॥ ९० ना० ॥४॥ की अबला इन्द्री जोवतां मन थायें वसि प्रेम अबला इन्द्री निरखता रे, बांधे विप रस पेम । राजमती देषी करी हो तुरत डिग्यो रहनेमि सु० ना०॥॥ राजमती देखी करी रे, तुरत डिग्यों रहनेम ॥ सु० मा० ॥६॥ रूप कूप देषी करी मांहि पढे कांमध। रूप में रूडी देखने रे, मांहें पढें काम अंध।.. - दुष मांणं जांगे नही हो कहै जिनहरप प्रबंध सु० ना सुख मांणे जाणें नहीं रे, ते पाडे दुरगत नो बंध ॥ सु० ना० ॥४॥ ढाल-६ श्री जिनहर्षजी की कृति में २ दोहे और ७ गाथाएं हैं और स्वामीजी के की कृति में ३ दोहे और ७ गाथाए। स्वामीजी का दूसरा दोहा जिनहर्षजी के प्रथम दोहे से मिलता-जुलता है : संयोगी पास रहै ब्रह्मचारी निसदीस। संजोगी पासें रहें, बह्मचारी दिन रात।. कुशल न तेहनां व्रत भणी भाजै विसवावीस ॥१॥ तेह तणा सब्द मुगयां, हुवें वरत नी धात ॥२॥ सामान्य शाब्दिक समानता के अतिरिक्त गाथाएँ प्रायः भिन्न हैं। ढाल-७ जिनहर्षजी की कृति में २ दोहे और ६ गाथाएं हैं, और स्वामीजी की कृति में २ दोहे और १५ गाथाएं। प्रथम दोहा मिलताजुलता है. : तर पर र .. छठी वाडे इम कह्यो चंचल चित्त म डिगाय ॥ हिवें छठी बाढ़ में इम कहों, चंचल मन म ढिगाय। .. पाधौ पीधौ विलसीयौ रे तिण सूंचित म लगाय॥१॥ खाधों पीधों विलसीयों, ते मत याद अणाय ॥१॥... .. गाथाएं सर्वथा भिन्न हैं। जिनरक्षित का शास्त्रीय उदाहरण मिलता है, पर सर्वथा अन्य शब्दों में है। ढाल-८ श्री जिनहर्षजी की कृति में २ दोहे और ७ गाथाएं हैं और स्वामीजी की कृति में ४ दोहे और १६ गाथाए। मिलते-जुलते दोहे इस .. प्रकार हैं: 1 मारक भी ESTERESTERNA पाटा पारा चरचरा मीठा भोजन जेह। खाटा खारा चरचरा, वले मीठा भोजन जेह। । मधुरा मोल कसायला रसना सहु रस लेह ॥१॥ वले विविध पणे रस नीपजें, ते रसना सब रस लेह ॥३॥ Page जेहनी रसना वसि नही चाहै सरस आहार। जेहनी रसना बस नहीं, ते चाहे सरस आहार । ते पामे दुष प्राणीयौ चौगति रूलै संसार ॥२॥ ते वरत भांगे भागल हुवे, खोयें ब्रह्म वरत सार ॥ sai पहली गाथा जिनहर्षजी की दूसरी गाथा से मिलती-जुलती है : mum to start कमल झरै उपाडतां घृत बिदु सरस आहारो रे। कवलांकरें आहार उपारतां, घ्रत विन्यूँ झरतो आहार भारी । ते आहार निवारीय तिण थी वध विकारो रे ॥२॥ एहवो आहार सरस चाप २ में, नित २ न. कर ब्रह्मचारी रे॥ Frt -2230 131 ए बाढ़ म लोपो सातमीं ॥१॥ अन्य गाथाएं सर्वथा भिन्न हैं। कई दृष्टान्त सामान्य होने पर भी बिल्कुल पृथ्क भाषा में है। श्री जिनहर्ष रचित ढाल में २ दोहे और ५ गाथाएं हैं और जब कि स्वामीजी की कृति में ४ दोहे और ४० गाथाएं। मिलते-जुलते दोहै. इस प्रकार हैं: अति आहारे दुष दुवै., गले रूप मुगात । अति आहार थी दुःख हुव, गल रूप : बलं यात 17 आलस नींद प्रमाद घण दोष अनेक कहात ॥१॥ परमाव निद्रा आलस हुव, वले अनेक रोग होय जात ॥ M ars Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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