SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ शील की नव बाड़, ए प्रत्यक्ष काम में भोग, मोने लागे छे वमिया आहार सारखा जी | . ... ते है किम करूं भोग संजोग, मोन मुगत सुखां री आइ पारिखा जी ॥ जो हूं करूं राणी सूं प्रीत, तो हूँ कर्म बांधे जाऊ कुगत में जी। चिहुँ गत में होऊ फजीत, घणो भ्रमण करूं इण जगत में जी ॥ मोन मरणो छे एक बार, आगल पाछल मो भणी जी। मुख दुःख होसी कर्म लार, तो सेंठो रहूं न चूकं अणी जी ॥ unctre - आ मल मूत्र तणो भंडार, कूड कपट तणी कोथली जी। animals ... इण में सार नहीं थे लिगार, तो हूँ किण विध पा{ इणसूं रली जी ॥ अनेक मिले अपछरा आण, रूप करे रलियामणो जी। त्यांने पिण जाणू जहर समान, म्हारे मुगत नगर में जावणो जी ॥ इस तरह विचार, सदर्शन ने मन को स्थिर कर लिया। उसके मन में काम जरा भी व्याप्त नहीं हुआ। रानी ने सुर्दशन को चलित करने के लिए अनेक मोहक बातें कहीं पर वे सब उसी तरह अनसुनी हुई जैसे कोई पाषाण की मूर्ति के सामने बोल रहा हो-"जाने पाषाण की मूरत आगे, कहिवा लागी वाणी जी।" frofestio n s इस तरह सारी रात बीत गयी। प्रभात होने पर रानी बाहर पायी और उसने जोर-जोर से चिल्लाकर सबको इकट्ठा कर लिया और सुदर्शन पर दुश्चरिता का कलंक लगा दिया। राजा ने सुदर्शन को गिरफ्तार करा लिया और शूली पर चढ़ाने की आज्ञा दे दी। शूली पर चढाने के लिए सेठ सुदर्शन को शूली के नीचे खड़ाकर दिया गया। वह विचार ने लगा : aria सेठ सुदर्शन करे छे विचारणा रे, उभों सूली रे हेठ कर्म तणी गति बांकडी रे, ते भोगवणी मुझ नेठ ॥ किहां अभिया राणी राजा तणी रे, किहां है सुदर्शन सेठ । sex ante: किहा हूँ मसाण भूमिका मांहीं रह्यो रे, किहां है आय उभो सूली हेठ ॥ इण चंपा नगरी में है।मोटको रे, ते सुदर्शन सेठ । र म्हारा बांधा पाप कर्म उदे हुवा रे, तिणसू आय उभों सूली हेठ ॥ कर्म सं बलियो जग में को नहीं रे, विन भुगत्यां मुगत न जाय जे जे कर्म बांध्या इण जीवडे रे, ते अवश्य उदे हुवे आय जी anita TET ज्यू में पिण कर्म बांध्या भवापाछले रे, ते उदे हुवा छे आय । TET RIN K E TERIES HERE पिण याद न आवे कर्म किया तिके रे, एहवो ग्यान नहीं मो माया के में चाडा खाधी चौतरे रे, दिया अणहुंता आल माई -मका ते आल अणहंतो आयो शिर मांहरे रे, निज अवगुण रह्यो रे निहाल के में दोपद चोपद छेदिया रे, के छेदी वनराय । के भात पाणी किणरा में रूधिया रे, के में दीधी त्यांने अंतराय ॥ के में साधु सती संतापिया रे, के में दिया कुपात्र दान | taima के में थील भांग्या निज पारका रे, के में साधां रो कियो अपमान ॥ तीर्थङ्कर चक्रवर्ति छे महा बली रे, बासुदेव ने बलदेव । . त्यांरे पिण अशुभ कर्म उदे हुवा रे, जब भुगत लिया स्वयमेव ॥ .. . मोटी मोटी सतियां थी तेहमें रे, बिखा पड्या छे आय। बले बडा बडा ऋषिश्वर त्यां भणी रे, कष्ट पड्यो त्यां मांय ॥ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy