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________________ भूमिका १२३ ....(१५) मुझे प्रात्मा को कसना चाहिए। उसको जीर्ण-पतली करना चाहिए। तप से शरीर को क्षीण करना चाहिए'। (१६) जिन्हें तप, संयम और ब्रह्मचर्य प्रिय हैं, वे शीघ्र ही अमर-भवन को प्राप्त करते हैं । (१७) मनुष्यों के सब सदाचार सफल होते हैं। जीवन प्रशाश्वत है। जो इसमें पुण्य, सत्कृत्य और धर्म नहीं करता, वह मृत्यु के मुख में पड़ने के समय पश्चात्ताप करता है ।कार32 (१८) भोग से ही कर्मों का लेप-बन्धन-होता है । भोगी को जन्म-मरण रूपी संसार में भ्रमण करना पड़ता है, जब कि अभोगी संसार श्री (१९) काम-भोग शल्य रूप हैं । काम-भोग विषरूप हैं। काम-भोग जहरी नाग के सदृश हैं । भोगों की प्रार्थना करते-करते जीव विचारे उनको प्राप्त किए बिना ही दुर्गति में चले जाते हैं। ... (२०) आत्मा ही सुख और दुःख को उत्पन्न करने औरन करनेवाली है । आत्मा ही सदाचार से मित्र और दुराचार से अमित्र-शत्रु है । (२१) अपनी आत्मा के साथ ही युद्ध कर। बाहरी युद्ध करने से क्या मतलब ? दुष्ट आत्मा के समान युद्ध योग्य दूसरी वस्तु दुर्लभ है। .. १-आचाराङ्ग १, ४।३ : ४-५ : कसेहि अप्पा जरेहि अप्पाणं का १. इह आणाकंखी पंडिए। का। अणिहे एगमप्पाणं । सपेहाए धुणे सरीरगं । क २–दशवैकालिक ४.२८ : पच्छा वि ते पयाया, खिप्पं गच्छन्ति अमरभवणाई। जेसि पिओ तवो, संजमो अ खन्ती अ बंभचेरं च ॥ ३-उत्तराध्ययन १३. १०, २१ : सव्वं सुचिएणं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न मोक्खो अस्थि । । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहि, आया ममं पुगणफलोववेए॥ इह जीविए राय असासयम्मि, धणियं तु पुण्णाई अकुव्वमाणो। से सोयई मच्चुमुहोवणीए, धम्म अकाऊण परंमि लोए॥ ४-वही २५. ४१ : उवलेवो होई भोगेस, अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चई ॥ ५-वही ६.५३: RAP E मकामा विकास कामा आसीवियोमा कामे य पत्थेमाणा, अकामा जति दोग्गई॥ Giantamanialisation ६-वही २०.३७ : अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सहाण य । अप्पा मित्तममितं च, दुप्पट्टिय सुप्पढिओ॥ ७-आचाराङ्ग ५॥३, १५३: इमेण चेव जुज्झाहि कि ते जुज्झण वज्झओ। जुद्धारिहं खलु दुल्लभं । Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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