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________________ भूमिका (२) यदि समभावपूर्वक विचरते हुए भी यह मन कदाचित् बाहर निकल जाय तो साधक सोपे मेरी है और न मैं उसका हूँ ।" jets ( ३ ) नरक में गये हुए दुःख से पीड़ित और निरन्तर क्लेशवृत्तिवाले जीव की जब नरक सम्बन्धी पल्योपम और सागरोपम की श्रायु भी समाप्त हो जाती है, तो फिर मेरा यह मनोदुःख तो कितने काल का है ? ( ४ ) यह मेरा दुःख चिरकाल तक नहीं रहेगा। जीवों की भोग-पिपासा श्रशाश्वती है । यदि विषय-तृष्णा इस शरीर से न जायगी, तो मेरे जीवन के अन्त में तो अवश्य जायगी । S 40 (५) जब कभी इन मनोरम कामभोगों को छोड़कर पल बसना है। इस संसार में धर्म ही त्राण है। धर्म के शिया अन्य वस्तु नहीं है को दुर्गति से रक्षा कर सके। ( ६ ) जैसे घर में भाग लगने पर गृहपति सार वस्तुनों को निकालता है और प्रसार को छोड़ देता है, उसी तरह जरा और मरणरूपी श्रग्नि से जलते हुए इस संसार में अपनी आत्मा का उद्धार करूँगा। (७) जिसमें मैं मूति हो रहा हूँ-वह जीवन और रूप विद्युत्सम्पात की तरह है। (८) स्त्री का शरीर जिसके प्रति मैं मोहित हूँ, अशुचि का भण्डार है । १ दशकालिक २४ : समाइ पेहाइ परिव्वतो, सिया मणो निस्सरई बहिद्धा । न सा मई नो वि आईपि तीसे इमेव ताओ रा if the २कालिक पू० १.१५ : इमरसता नेरइयस्स जंतुणो, दुहवीवहस किलेस पलिओवमं झिज्झइ सागरोवमं, किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं ॥ mig me ३ यही १.१६३ अनेकन न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सह, असासया भोगपिवास जंतुणो । न में सरीरेण इमेणऽविस्सइ, भविस्सई जीवियपज्जवेण मे ॥ ४- उत्तराध्ययन १४. ४० : मरिहिसि रायं जया तथा वा, मणोरमे कामगुणे पहाय । एको हु धम्मो नरदेव ! ताणं, न विज्जई अन्नमिहेह किचि ॥ ५ - वही १६. २३-२४ जहा गेहे पलितम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू। सारभवडाणि नीणे, असारं अवभद !! एवं लोए पलित्तम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुब्भेहि अणुमन्निओ ॥ ६-वही १८.१३ : जीवियं वेव रूवं च, विज्जुसंपायचञ्चलं । जसं मुरसि राय, पेच्चत्थं नाव बुज्झसि ॥ -आचाराङ्ग १, २-५ : ॥ Forbes क sy joy to pitem je sebine in sizfvar saint अंतो-अंतो देहं तराणि पासह पुढोविसवंताई' पंडिए पडिलेहाए hub prah en aften fire :$$. stone for b ग :07 STARTE :). Pre ine ( 200 : F3.37 FROSTROS (3) -- fam () १२१ ড় (a) Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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