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________________ १०२ शील की नव बाड़ ६-प्रतिमात्रा में प्राहार करनेवाला न हो। -पर्व रति, क्रीडानों का स्मरण करनेवाला न हो। . - STRES S ८-शब्दानुपाती, रूपानुपाती और श्लोकानुपाती न हो। -सुखाभिलाषी न हो। १०-शरीर-विभूषा करनेवाला न हो। .. . . महात्मा गांधी ने भी प्रश्नकर्ताओं को ठीक ऐसे ही उत्तर दिये हैं, जो उद्धृत अंशों में जगह-जगह प्राप्त हैं। महात्मा गांधी के चिन्तन स्वयं अस्थिर से लगते हैं। कभी उन्होंने बाड़ों की अत्यन्त आवश्यकता महसूस करते हुए उनके पालन पर अत्यन्त बल दिया और कभी जब उन्होंने स्वतंत्र प्रयोग किये और आलोचना हुई तब बाड़ों की निरर्थकता पर काफी जोर दिया। कभी साधक के लिए उन्हें जरूरी माना और कभी उसके लिए भी उनकी जरूरत न होने की बात कह दी। ऐसा होते हुए भी महात्मा गांधी बाड़ों का खण्डन नहीं कर पाये। पर उन्होंने स्वयं वही बाड़ें दी हैं, जो श्रमण भगवान महावीर ने दी। नीचे तुलनात्मक तालिका दी जाती है, जिससे यह बात स्पष्ट होगी:-१--ब्रह्मचारी स्त्री-नपुंसक-पशु-संसक्त स्थान में न रहे।. १-पति और पत्नी को अलग-अलग कमरों में रहना चाहिए। TA ...अलग-अलग कमरों में सोना चाहिए। २-वह मोहोत्तेजक स्त्री-कथा न करे, एकान्त में स्त्री के साथ २–यदि साथ-साथ बातें करने में विकार पैदा हों तो बातें नहीं .. बात न करे। पर करनी चाहिए । ........ ३-वह स्त्री के साथ एक शय्या, एक आसन पर न बैठे। ३–पति-पत्नी को एकांत से बचना चाहिए। उन्हें एक-दूसरे के ... साथ एकान्त-सेवन नहीं करना चाहिए। एक कोठरी में एक दिन चारपाई पर नहीं सोना चाहिए . .. ४-वह स्त्री की मनोहर इन्द्रियों पर टकटकी न लगाये। , ४–पाँखें दोष करती हों तो उन्हें बन्द कर लेना चाहिए ।..... 23 अखिों को सदा नीची रखकर चलने की रीति अच्छी है। ५-वह कामुक शब्दों को न सुने। ५-अनेक...ब्रह्मचर्य-पालन में हताश हो जाते हैं. इसका कारण, राय यह है कि वे श्रवण, दर्शन...भाषण प्रादि. की र्मयादाएं नहीं जानते।...कान दोष करें तो उनमें रूईभर लेनी चाहिए। जहाँ गन्दी बातें हों या गन्दे गीत गाये जा रहे हों, वहाँ से 'तुरन्त रास्ता लेना चाहिए। १-(क) देखिए पृ० १२६ (ख) उपदेशमाला गा०३३४-३३६ : य TRan .. इत्थिपमुसंकिलिह, वसहि इत्यीकहं च वजतो । इत्थिजगसंनिसिज', निरुवणं अंगुर्वजाणं ॥ पुन्वरयाणुस्सरणं, इत्थीजणविरहरूवविलवं च । अइबहुभं अइबहुसो, विवजतो अ आहारं ॥ - वजतो. विभूसं, जइज इह बंभचेरगुत्तीस । साहु तिगुत्तिगुत्तो, निहुओ दंतो पसंतो ॥ २-अनीति की राह पर पृ० ५५ ear ३-देखिए पीछे पृ०६२ ४-देखिए पीछे पृ०६५ ५-अनीति की राह पर पृ०५५ ६-देखिए पीछे पृष्ठ ६५ ७-देखिए पीछे पृ०६२ " पृ०६५ " पृ.१२ ६ Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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