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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरूनंदन [६३ पन्द्रहवीं सदी (१०१) श्री गौतम स्वामि छन्द गा०१० आदि--ता सुरतरु जिम जयवन्तु महावणि, सुरभंडारि जेम चिन्तामणि । दिणमणि जिमं सोहइ गयणंगणि, तिम जिण सासणि सिरि गोयम गणि॥१ अन्त-नियमण वछिय कज्जि नमइ, जसू सुरनर किन्नर । इद चंद नागिंद असुर, विज्जाहर मुणिवर । उच्छव मंगल रिद्धि विद्धि, जसु नामि पयासइ । रोग सोग दोहग्ग दुरिय, दुरतरि नासई । सो वीर सीस सूरीस वरु, महिम गरिम गुणि मेरु गुरु । सिरि गोयम गणहरु, जयउ चिरु, सयलसंघ कल्याण करु ॥१० (१०२) श्री स्थूलिभद्र मुनीन्द्रच्छंदांसि गा०८ आदि-जो जिण सासणि कमल वणिहि, हंस जेम विक्खाउ । सो वन्निसु सोवन्न तणु, थूलिभद्द मुणिराउ ॥१ अन्त-थूलिभद्दु मुणिवरु जयउ, घण गुण रयण निहारणु । सयल सघ मंगल करण, धीरिम 'मेरु समारा ।। (१०३) श्री स्थूलिभद्र मुनीन्द्र छंदांसि गा० २५ प्रादि- मेरु समाणु जु सीलि पसिद्धउ, कोस वेस रस रंगि न विद्धठ । मलिउ मयण बल जिणि अलवेसरि, जयउ सुथूलिभद्द, मुणि केसरि । १ For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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